Health insurance in hindi



Health insurance
 (medical insurance) Puri jankari.



दोस्तो आज कल की बिजी लाइफ मैं हमारी हेल्थ बिगड़े जा रही है सब को कुछ न कुछ हेल्थ से जुड़ी प्रोब्लम हो रही है शायद ही कोई हो ग जो पूरी तारा से सुस्त हो गा । अपनी हैल्थ को सही रख ने के लिए आप ने कई वीडियो,आर्टिकल पहाढे लिए हो गए पर आप ने कभी हेल्थ इन्शुरन्स के बारे मे सोच की अगर हम बीमार हो गए तो कितने पैसे हमारे ऊपर लग सकते ह इस लिए हैम पहले ही हेल्थ इन्शुरन्स क़ न कर व ले तो आज दोस्त हैम ऐसे ही topics पर बात करे गए तो चलो जानते है कोन से insurance हमारे लिए सही है को से गलत तो चलो सुरु कर ते है ।


Kuch points mai aap ko ye article batuga jis se ye article aap ko ache se smaj aa jay ga

1, Health insurance क्या है और क्या क्या है फायदे है

2, Health Insurance क्या है  Health Insurance कैसे लें पूरी जानकारी

3, हेल्थ इंश्योरेंस: कायदे, फायदे और वायदे

4, परिवार के लिए कराना है हेल्थ इंश्योरेंस, पहले जान लें फैमिली फ्लोटर प्‍लान के फायदे और उनकी खासियत

5, जॉइंट फैमिली के लिए हेल्थ कवर

6, जानें, कितना जरूरी है हेल्‍थ इंश्‍योरेंस कराना, कैसे देता है आपको फायदा

7, हेल्‍थ इंश्‍योरेंस खरीदते वक्‍त जान लें कितनी हैल्‍दी है आपकी पॉलिसी, इन 10 बातों का रखें ख्‍याल

8, मेडिक्लेम पॉलिसी खरीदने में इन बातों का रखें ध्यान

9, ले रहे हैं क्रिटिकल इलनेस कवर, 5 बातों का रखें ध्‍यान

10, भारत में सबसे बेस्ट हेल्थ इंश्योरेंश प्लान

11, मानसिक रोगियों को भी मिलेगा स्वास्थ्य बीमा का लाभ, हेल्थ पॉलिसी लेते समय रखें सावधानी

12, 2332 रुपए में मिल जाएगा 20 लाख का कैंसर कवर, चेक करें 4 बीमा कंपनियों के बेस्‍ट प्‍लान

13, normal advice...

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तो चलो सुरु कर ते इन टॉपिक के बारे जानना

Health insurance क्या है और क्या क्या है फायदे है


अधिकतर लोग Health Insurance का चुनाव इंश्योरेंस एडवाइजर की सलाह पर करते हैं और ऐसे में वे सही जानकारी से महरूम रह जाते हैं India  में ज्यादातर लोगों के पास Health Insurance नहीं है जिनके पास है भी, उनमे से भी बहुत अधिक लोगो  को इसकी सही समझ नहीं होती कि उनके लिए कौन सा Health Plan ठीक है क्यूंकि ज्यादातर लोग Insurance Agent की बातो पर भरोसा करके स्वास्थ्य बीमा खरीद लेते हैं और जिससे बाद में पछताना पड़ता है  तो आएये जानते है की स्वास्थ्य बीमा क्या है और इसके क्या क्या फायदे हैं -

Customer Health insurance खरीदने मैं कह गलती करते है ।

जी हाँ मैं कस्टमर की गलती के विषय में नहीं बल्कि उनके अपेक्षाओं के बारे में बताना चाहूंगा- ये तीन महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रकाश डाल रहा हूं- ज्यादातर उपभोक्ताओं को यह गलतफहमी रहती है कि हेल्थ इंश्योरेंस, हॉस्पिटल में होने वाले खर्च के बराबर होता है- यदि कंपनी की ओर से ग्रुप इंश्योरेंस कराई जाती है तो भी वह समझते हैं कि हेल्थकेयर के लिए सोचने की जरूरत नहीं है इस तरह की गलती अममून बहुतायत उपभोक्ताओं के साथ देखने को मिलती है-

Health Care का कास्ट कुछ सालों के अंदर कई गुणा बढ़ गया है हालांकि हेेल्थ इंश्योरेंस बहुत जरूरी है इसी को देखते हुए आपको सही व्यक्ति से सही जानकारी लेनी आवश्यक है कि उनके लिए कौन सा Health Insurance जरूरी है-

यदि आप दूसरी मुख्य बात पर नजर डालें तो लोगों को सही पालिसी की समझ नहीं होती है  कई ऐसी पालिसी होती है जो बीमारी को देखते हुए भुगतान करती है कस्टमर को पालिसी लेने से पहले उससे जुड़ी जानकारियां जुटानी चाहिए या एडवाइजर से जानकारी लेनी चाहिए-

बीमा कंपनियां पैसे बनाने के लिए मार्केट में काम कर रही है वे अपने लाभ को अधिक करने के लिए प्रीमियम अधिक लेना चाहते हैं प्रीमियम की गणना कस्टमर द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित होती है कंपनियां प्रीमियम की गणनना परिवार के इतिहास, तम्बाकू सेवन आदि को देखते हुए तय करती हैं सही जानकारी देकर आप कम प्रीमियम भुगतान करके भी हेल्थ इंश्योरेंस ले सकते हैं

पालिसी लिम्स पहला फैसला महत्वपूर्ण है

यह हर किसी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है कि वह बीमार होने का इंतजार किए बिना, अपनी जरूरत को देखते हुए हेल्थ पालिसी लेनी चाहिए-जब आप युवा होते हैं तो आपका प्रीमियम कम होता है- उम्र बढऩे के साथ प्रीमियम बढ़ता जाता है- इसलिए प्रीमियम का चुनाव करने के लिए शुरुआती फैसला काफी महत्वपूर्ण होता है अन्यथा पालिसी पर क्लेम का लाभ कम ही मिलता है और आश्चर्य अधिक होता है- आप किसी भी इंश्योंरेस कंपीनी के पास ऐसे इंश्योरेंस लिजिए जिसका प्रीमियम कम हो और सम इंश्योरर्ड ज्यादा हो- इसके साथ ही कोशिश करनी चाहिए कि आपको उसी इंश्योरेंस कंपनी से ज्यादा लाभ मिल सके, जैसे कि अधिक विस्तृत कवर बीमारियों पर और ज्यादा नो-क्लेम बोनस-आपकी बीमारी में जो खर्च हुआ उसके मुकाबले इंश्योरेंस कंपनी पैसा कम देती है जानते है ऐसा क्यों होता है :-

ऐसा उस केस में होता है, जब बिल अमाउंट बीमा पालिसी में दिए हुए एश्योर्ड रकम से अधिक हो जाता है ऐसी हालत में पालिसी-धारक को ही पैसा देना होता है दूसरी स्थिति तब आती है जब खर्च की गई रकम बहुत ही कम होती है और उसे क्लेम नहीं किया जा सकता- इसके अलावा भी कई अन्य कारण हो सकते हैं, जो बेईमानी की ओर इशारा करते हैं-इलाज का खर्च बहुत ही बढ़ गया है एक आदमी इस बढ़ी हुई महंगाई में हेल्थ इंश्योरेंस कैसे ले.?

यही एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें इंसान गलती नहीं कर सकता है तो वह हेल्थ केयर है आपको पता होना चाहिए की कुछ सालों के अंदर ही हेल्थ कास्ट किस तेजी से बढ़ गया है- हेल्थ इंश्योरेंस आपको इसमें मदद करता है-

वर्तमान में हेल्थ इंश्योरेंस का दायरा काफी बढ़ गया है जो कि 5-10 साल पहले नहीं हुआ करता था- मान ले कि एक फैमिली मेंबर का हास्पिटल का बिल 10 लाख आया और इंश्योरेंस कावर मात्र तीन लाख रुपए का था- हेल्थ इंश्योरेंस वास्तव में एक धन संरक्षण उपकरण है- यदि बीमा की रकम कम है तो यह आपके परिवार को कई साल पीछे कर देता है-

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कम खर्च मैं पूरे परिवार का बीमा कैसे लिए जाए

हेल्थ इंश्योरेंस में दो प्रकार से बीमा किया जाता है पहला व्यक्तिगत बीमा, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का बीमा होता है और दूसरा पूरे परिवार का बीमा, जिसमें परिवार के सदस्यों की कोई सीमा नहीं होती- यदि आप व्यक्तिगत बीमा कराते हैं और आपके परिवार में 4 लोग हैं और सभी की पालिसी 3 लाख रुपए है तो 12 लाख रुपए की पालिसी आपके पूरे परिवार की हुई- इस बीमा में व्यक्तिगत बीमा कवर 3 लाख रुपया हुआ, जबकि दूसरे केश में सदस्यों की कोई संख्या नहीं है। दूसरे हालात में प्रीमियम परिवार के सबसे बड़े सदस्य को देखते हुए तय किया जाता है ज्यादातर मामलों में फैमिली फ्लोटर अच्छा होता है न्यूक्लियर फैमिली के मुकाबले, जब परिवार के सबसे बड़े सदस्य की आयु 30 से 40 साल हो-बड़े परिवार व्यक्तिगत पालिसी के मुकाबले फ्लोटर पालिसी अच्छी मानी जाती है-

बीमा पालिसी मुख्य रुप से निवेश के लिए इस्तेमाल होती है इस स्थिति को कैसे सही किया जाए

हमारे देश के अंदर ज्यादातर लोगों के पास बीमा पालिसी नहीं है और जिनके पास है भी उनका सम एश्योर्ड बहुत ही कम है- जिससे उनके परिवार का गुजर-बसर नहीं चल सकता है- बीमा की रकम कम होने से वे न तो अपने घर का लोन दे सकते हैं न ही कुछ और कर सकते है- इंश्योरेंस सेक्टर में काम कर रही कंपनियों को चाहिए कि वे लोगों को जागरुक करें और सम एश्योर्ड अमाउंट को बढ़ाएं- निवेश के जरिए बचत करना अच्छी बात है, पर इससे आपके परिवार की जरूरत भी पूरी होनी चाहिए-

यदि उपभोक्ता के पास हेल्थ कवर है तो अस्पतालों में ज्यादा चार्ज किया जाता है और उपभोक्ता को अगले साल अधिक प्रीमियम का भुगतान करना होता है-

आपसी  ताल-मेल से बीमा कंपनियों और हास्पिटल्स को साथ बैठकर इस मामले को सुलझाना चाहिए और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए- उपभोक्ताओं से बिल्कुल सही प्रीमियम लेना चाहिए- किसी की बीमारी से फायदा उठाना बहुत ही बुरी बात है- किसी व्यक्ति से सिर्फ इसलिए ज्यादा चार्ज लेना क्योंकि उसके पास हेल्थ कवर है, बहुत घटिया परंपरा है, इस अवश्य रोक लगनी चाहिए-

अंत में ये कहना है कि उपभोक्ता को अपनी जरूरत को देखते हुए सही पालिसी लेनी चाहिए- इसके लिए आप थोड़ा समय लें और सही तरह से समझने के बाद ही पालिसी का चुनाव करें- इसमें नई कार या फोन खरीदने जैसा रोमांच नहीं हो सकता है, पर इसका महत्व व इसकी कीमत बहुत बड़ी है-

आपका चुनाव और  सही निर्णय आपके जीवन के लिए सही फलीभूत होगा अत:सोचे समझे और फिर पालिसी ले-

Health Insurance क्या है  Health Insurance कैसे लें पूरी जानकारी



What is Health Insurance ? Health Insurance क्या है ?

यहाँ मै आपको बताना चाहूंगा कि आप सभी अपनी मोटर bike या car का बिमा मतलब की इन्शुरन्स तो करा लेते हैं तब आप ये सुनिश्चित हो जाते हैं कि अगर कही accident हो भी गया तब आपके car या motor bike की repairing के पैसे बच जाएंगे क्योंकि आपके पास उसका insurance ( बिमा ) है, लेकिन आपने ये क्यों नहीं सोचा की अगर accident में आपको कही चोट आगई या कोई हादसा हो गया फिर …

लकिन अगर आपने अपना health insurance करवा रखा है तो आपके hospital का पूरा खर्चा आपके insurance की कंपनी को भरना होता है । ऐसे में आप और आपका परिवार दोनों सुरक्षित रहते हैं । इसलिए health insurance बहुत ज्यादा जरुरी हो जाता है । मानलो आप बहुत तेज़ बीमार पड़ गए तब अगर आपने समय पर अपना health insurance करवा रखा है तो आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं क्योंकि आपके इलाज़ का खर्चा अपने आप आपका health इन्शुरन्स से बच जायेगा । तो ये था हेल्थ insurance ( स्वास्थ्य बीमा ) । ऐसे ही ओर अछे articles के लिए जुड़े रहे ( https://normaladvices.blogspot.com ) से।

  स्वास्थ्य बीमा के बारे में

health insurance एक प्रकार का बिमा होता है जो किसी बिमा कंपनी से लिया जाता है । इसको लेने के बाद ये आपके और आपके परिवार के सभी सद्श्यों की बीमारी में होने वाले खर्चे की राशि को वहन करता है । लेकिन ये कितनी राशि तक आपकी मदद करता है ये आपके insurance plan और आपके insurance plan की policy पर निर्भर करता है । इसमें आपको सालाना premium देना होता है मतलब की आपको आपके insurance plan की राशि का भुगतान करना होता है । ये आप पर depend करता है कि आप कैसा insurance plan चुनते हैं ।

Health Insurance Plan कैसे choose करें

health insurance plan choose करने से पहले आपको जिस insurance company से आप प्लान ले रहे हैं उसके बारे में जानना चाहिए की वो कितनी trusted है और उसकी policy क्या हैं । साथ ही आप ये भी देखें की आपका health insurance plan आपकी family के किन किन members को cover करता है और किन – किन बीमारियों को cover करता है । साथ ही यह भी जान लें कि आपका plan कैसे आपकी मदद करेगा तथा कब आपको payment करेगा ।

Health Insurance Policy लेते समय ध्यान देने योग्य बाते

1.  सबसे पहले तो आपको अपना health insurance plan लेने से पहले अलग अलग companies के health प्लान compare करने चाहिए ताकि आपको कुछ बेहतर मिल सके । इसके लिए आप Google पर Online सर्च कर सकते हैं ।

2.  जिस भी company को आप choose करें आप उसके सभी plan को ध्यान से पढलें ।

3. कभी भी Agents के चक्कर में न पड़े क्योंकि वो आपके फायदे से पहले अपने फायदे के बारे में सोचता है । इसलिए खुद ही policy को पढ़ें । अगर हो सके तो अपने साथ किसी अपने खास जानकार को लेकर जायें जो आपका अपना हो ।

4.  अपनी insurance कंपनी की सभी terms को ध्यान से पढ़ें । इनमे कुछ ऐसे भी points होंगे जो आपको कोई बतायेगा नहीं वो आपको खुद ही समझने होंगे ।

5. आप जो भी हेल्थ इन्शुरन्स प्लान लें वो ऐसा हो जो आपकी family को पूरा support करता हो । कभी भी सस्ते plan के चक्कर में ना पड़ें ।

6. सभी plans अलग अलग बिमारियों को cover करता है इसलिए ये भी देख लें कि आपका plan कोन कोन सी बिमारियों को cover करता है ।

Health Insurance लेने के बाद ध्यान देने योग्य बाते 

1. अपने हेल्थ Card की details कही पर लिख कर रखें ।

2. अपना Health Card हमेशा अपने पास रखें क्योंकी अचानक होने वाली दुर्घटना में यही आपके काम आएगा ।

3. Policy से Related सभी documents की photocopy अपने पास रखें । ये documents हमेशा आपके पास होने चाहिएं ।

4. अपनी Health Insurance Policy Company के TollFree और Non – TollFree नंबर हमेशा अपने पास रखें ।

5. Emergency में अपनी हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी को अपने Hospitalized होने की खबर करदें ।

6. ये सभी जानकारी आप याद रखें और अपने Dosto को भी ये Article Share करके उन्हें भी बताएं ।




हेल्थ इंश्योरेंस: कायदे, फायदे और वायदे


मेडिकल टेस्ट

45 साल से कम उम्र के हैं तो पॉलिसी लेने से पहले किसी मेडिकल चेकअप की जरूरत नहीं होती। कुछ कंपनियों में यह उम्र 60 साल भी है। 45 साल वालों को जो टेस्ट कराने होते हैं, वे कस्टमर को अपने खर्च पर कराने होते हैं। कई बार रिपोर्ट कस्टमर खुद ही कंपनी को देता है और कई बार कंपनी में सीधे रिपोर्ट चली जाती है। दोनो ही मामलों में कस्टमर के पास इतना मौका होता है कि वह अपनी रिपोर्ट की फोटोकॉपी कराकर रख सके। कुछ कंपनियां प्रपोजल फॉर्म के साथ ही टेस्ट रिपोर्ट लगवाती हैं तो कुछ फॉर्म भर देने के बाद। कई कंपनियां यह भी बताती हैं कि टेस्ट कहां से कराने हैं। जो टेस्ट कराने पड़ते हैं, उन्हें हर कंपनी अपने हिसाब से तय करती है। 

फिर भी उनमें मोटे तौर पर ये टेस्ट होते हैं : बीपी, ब्लड शुगर, एसजीपीटी, कॉलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, यूरीन रुटीन, ईसीजी, चेस्ट का एक्सरे, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा आदि।

क्या होता है टीपीए

टीपीए एक तरह की कंपनी होती है, जो इंश्योरेंस कंपनी से अलग होती है। यह इंश्योरेंस कंपनी के लिए एक तरह के बीपीओ (प्रतिनिधि) के तौर पर काम करती है। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से संबंधित क्लेम के निपटारे और उसके तमाम पहलुओं को यही को-ऑर्डिनेट करती है। इन कंपनियों के पास इरडा का लाइसेंस होता है। इनका काम अस्पतालों के साथ मरीज के ट्रीटमेंट को लेकर को-ऑर्डिनेट करना और इंश्योरेंस कंपनी की तरफ से बिल पास करना होता है। जो शख्स इंश्योर्ड होता है, उसे टीपीए ही आईकार्ड मुहैया कराती है। इस आईकार्ड की जरूरत हॉस्पिटल में भर्ती होते वक्त पड़ती है। 

आजकल कुछ कंपनियां टीपीए रखती हैं, जबकि कुछ कंपनियां यह काम इनहाउस ही कराती हैं।

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कूलिंग ऑफ पीरियड

जिस दिन कोई शख्स हेल्थ पॉलिसी खरीदता है, उस दिन से 30 दिन तक का वक्त कूलिंग ऑफ पीरियड कहलाता है। इसका मतलब है कि इन दिनों के दौरान अगर उस शख्स को ऐक्सिडेंट की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, तब तो कवरेज पहले दिन से होगी, लेकिन अगर किसी बीमारी की वजह से कराया जाता है तो उसे कवरेज इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के 31वें दिन से मिलेगी। अगर साल पूरा होने के बाद पॉलिसी रिन्यू कराई गई है तो फिर यह शर्त लागू नहीं होती, बशर्ते रिन्यूअल प्रीमियम समय से पे कर दिया गया है। अगर आप पॉलिसी तय वक्त के बाद रिन्यू कराते हैं तो उसे नई पॉलिसी माना जाएगा और इसमें आपको नो क्लेम बोनस नहीं मिलेगा और कूलिंग ऑफ पीरियड भी लागू हो जाएगा।

पहले से मौजूद बीमारियां (प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज)

अपनी जिन बीमारियों के बारे में आपको पॉलिसी लेते वक्त पता है, उन्हें प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज कहते हैं। हर कंपनी की प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज की अपनी एक लिस्ट होती है। इस लिस्ट में शामिल बीमारियों का कवर कंपनी पॉलिसी के चार साल बाद देगी। कुछ बीमारियां ऐसी भी होती हैं, जो कभी भी कवर नहीं होतीं। इनकी भी हर कंपनी की अपनी लिस्ट होती है। मसलन एचआईवी, मनोरोग आदि।

नो क्लेम बोनस

अगर पॉलिसी की पूरी अवधि के दौरान कोई शख्स पॉलिसी से कोई क्लेम नहीं लेता है तो कंपनी उसे कुछ बोनस देती है। इसके कई तरीके हो सकते हैं।

कुछ कंपनियां सम इंश्योर्ड को पांच से दस फीसदी तक बढ़ा देती हैं। आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, अपोलो म्यूनिख और रॉयल सुंदरम जैसी कंपनियां इसी तरीके को फॉलो करती हैं।

जब लोग पॉलिसी रिन्यू कराते हैं तो कुछ कंपनियां नए प्रीमियम पर 5 से 10 फीसदी का डिस्काउंट दे देती हैं। कुछ कंपनियों का डिस्काउंट साल-दर-साल बढ़ता जाता है, जबकि कुछ कंपनियां एक ही दर से हर साल डिस्काउंट देती हैं।
मैक्स बूपा जैसी कुछ कंपनियां प्रीमियम अमाउंट के 10 फीसदी के बराबर रकम का वाउचर दे देती हैं। इसे ओपीडी या तमाम तरह के मेडिकल टेस्ट कराने के लिए यूज किया जा सकता है, जबकि कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं जो नो क्लेम की स्थिति में कोई डिस्काउंट नहीं देतीं। 

मेडिक्लेम में क्या होता है कवर और क्या नही

ये खर्च कवर होते हैं

अगर कोई शख्स ऐक्सिडेंट या किसी बीमारी की वजह से 24 घंटे या उससे ज्यादा वक्त के लिए अस्पताल में भर्ती हुआ है तो वह कवर होगा। 

इसमें ये खर्च शामिल होंगे :

कमरे का खर्च। आमतौर पर कंपनियां यह सीमा लगा देती हैं कि इस मद में वे रोज कुल रकम की एक फीसदी से ज्यादा पैसा नहीं देंगी। मसलन अगर तीन लाख की पॉलिसी है और रूम का रोज का कुल खर्च 6 हजार रुपये हो गया तो कंपनी आपको सिर्फ 3 हजार ही देगी। 

नर्सिंग और आईसीयू के खर्च। 

तमाम तरह के विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह और रूम विजिट की फीस।

हॉस्पिटलाइजेशन से पहले के खर्च। इसकी सीमाएं हैं। भर्ती होने से 30 दिन पहले तक अगर डॉक्टर के कहने पर मरीज के कुछ टेस्ट या एक्स-रे आदि कराए जाते हैं, तो वे कवर होंगे। 

हॉस्पिटलाइजेशन के बाद के खर्च। इसकी भी सीमाएं हैं। अस्पताल से छुट्टी मिलने के 60 दिन बाद तक डॉक्टर के बताए गए इलाज के जो भी खर्च हैं, वे कवर होते हैं।

कुछ खास तरह की डे केयर सर्जरी भी कवर होती हैं। इनमें अस्पताल में 24 घंटे भर्ती होने की शर्त नहीं होती। 

मसलन : कोरोनरी एंजियोग्राफी, कोरोनरी एंजियोप्लास्टी, ऐक्सिडेंट के बाद होने वाली डेंटल सर्जरी आदि। 

ऐम्बुलेंस का खर्च, हॉस्पिटल का रोजाना का खर्च जैसे कई मद भी कुछ सीमाओं के साथ कवर होते हैं, लेकिन इनमें बहुत कुछ पॉलिसी और कंपनी पर निर्भर करता है।

ये खर्च कवर नहीं होते

ठ्पास के किसी डॉक्टर से अगर आप घर पर या अस्पताल/क्लिनिक जाकर इलाज कराते हैं, लेकिन अस्पताल में भर्ती नहीं होते तो उसका खर्च पॉलिसी में कवर नहीं होगा। अगर वायरल बुखार 104 डिग्री से ऊपर चला जाए और उसके कारण मरीज को अस्पताल में कम-से-कम 24 घंटे के लिए भर्ती कराया जाए, तो उसका खर्च कवर हो जाता है।

मैटरनिटी का खर्च इन पॉलिसियों में आमतौर पर कवर नहीं होता, लेकिन मैक्स बूपा और अपोलो म्यूनिख जैसी कुछ कंपनियां कुछ सीमा और शर्तों के साथ यह कवर दे देती हैं। अगर आपकी पॉलिसी ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी है, तो उसमें मैटरनिटी खर्च कवर होते हैं। एक ही कंपनी जब ग्रुप मेडिक्लेम देती है तो इसे कवर करती है, वही कंपनी जब इंडिविजुअल कवर देती है तो इसे कवर नहीं भी करती। 
गौरतलब है कि ग्रुप मेडिक्लेम से मतलब उस कवर से होता है जो आपकी कंपनी की तरफ से आपको दिया जाता है।
ओपीडी, डेंटल, चश्मा, हियरिंग ऐंड आदि भी आमतौर पर कवर नहीं किए जाते, लेकिन अपोलो म्यूनिख और मैक्स बूपा जैसी कुछ कंपनियां कुछ सीमाओं और शर्तों के साथ इन्हें कवर करती हैं। 

कुछ काम की बातें

पॉलिसी लेते वक्त कंपनी द्वारा मांगी गई सूचनाओं को सही-सही दें। कई बार प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज में लोग ऐसी बीमारी को छिपा जाते हैं, लेकिन इससे नुकसान ही होता है क्योंकि जब ऐसी किसी बीमारी का क्लेम लेने आप जाएंगे तो डॉक्टर अपनी रिपोर्ट में यह साफ कर देगा कि वह बीमारी आपको कब से है।

आयुर्वेदिक और होम्योपैथी से इलाज कराने का खर्च भी कुछ पॉलिसियां कवर कर रही हैं, लेकिन यह सवाल बेमानी है क्योंकि मेडिक्लेम का मतलब हॉस्पिटलाइजेशन से है व इन पद्धतियों में मोटे तौर पर हॉस्पिटलाइजेशन होता नहीं है। 

अगर कभी होता है तो कुछ कंपनियों बहुत कम रकम इसमें देती हैं। नेचरोपैथी ट्रीटमेंट किसी भी हेल्थ पॉलिसी में कवर नहीं होता।

सभी बड़े हॉस्पिटल्स आमतौर पर सभी टीपीए और सभी कंपनियों को कवर करते हैं। कई बार कस्टमर अपनी पॉलिसी की शर्तों से वाकिफ नहीं होते। असली बात उन्हें तब पता चलती है, जब अस्पताल उन्हें मना कर देता है इसलिए शर्तों को सही से पढ़ना जरूरी है।

अगर कैशलेस नहीं करा रहे हैं तो अस्पताल से बिल लेने के बाद कंपनी से रीइंबर्स कराया जा सकता है। अस्पताल में ये बातें जरूर हों : कम-से-कम 10 बेड हों, रजिस्टर्ड हो, खुद का ऑपरेशन थिएटर हो, 24 घंटे नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर की सुविधा हो।

टीपीए और कंपनी में से कोई भी क्लेम नहीं दे रहा है तो आप कंपनी के हेड ऑफिस में शिकायत कर सकते हैं। अगर यहां से संतुष्टि नहीं मिलती तो आपके पास इंश्योरेंस ओम्बड्समैन में जाने का भी ऑप्शन भी है।

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अगर कोई यंग और हेल्दी भी है तो भी उसे यह पॉलिसी लेनी चाहिए क्योंकि बीमारी और ऐक्सिडेंट जैसी चीजें किसी के साथ कभी हो सकती हैं।

कई कंपनियां अपने एम्प्लॉई को हेल्थ इंश्योरेंस मुहैया कराती हैं। आपको भी ठीकठाक अमाउंट का कवर है तो हेल्थ इंश्योरेंस अलग से लेने से बच भी सकते हैं। ऐसे लोग टॉप अप भी ले सकते हैं। अगर आपका दो लाख का कवर कंपनी की तरफ से है तो आप 2 लाख से 6 लाख तक का टॉप अप किसी कंपनी से ले सकते हैं और उसके लिए अलग से प्रीमियम पे कर सकते हैं। टॉप अप के रूप में लिया गया आपका कवर थोड़ा सस्ता पड़ता है।

जिस साल आपने अपनी मेडिक्लेम पॉलिसी से क्लेम लिया है, उससे अगले साल इस बात के लिए तैयार रहें कि पॉलिसी रिन्यू करते वक्त कंपनी लोडिंग लगा देगी। लोडिंग का मतलब है कि अब आपको पहले से ज्यादा प्रीमियम देना होगा। यह बढ़ोतरी 20 से 200 फीसदी तक की जा सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि जिस मर्ज के लिए आपने क्लेम लिया है, उसकी स्थिति क्या है। अगर कंपनी को लगता है कि वह मर्ज ऐसा है कि आपको बार बार हॉस्पिटल जाना होगा तो वह ज्यादा प्रीमियम बढ़ा देती है। 

पोर्टेबिलिटी का फायदा 

1 अक्टूबर से हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में पोर्टेबिलिटी लागू हो चुकी है। इसके बाद पॉलिसी होल्डर बेसिक कवरेज खोए बिना अपनी इंश्योरेंस कंपनी बदल सकेंगे। 

आमतौर पर देखा जाता है कि कुछ इंश्योरेंस कंपनियां हर साल पॉलिसी का प्रीमियम बढ़ा देती हैं। कस्टमर चाहकर भी कंपनी छोड़ नहीं पाता क्योंकि पॉलिसी में कई फायदे कुछ साल बाद ही मिलते हैं। कोई बीच में छोड़कर किसी दूसरी कंपनी के पास चला जाए तो वह कंपनी उसे नए कस्टमर के तौर पर लेती है। ऐसे में कई बीमारियों पर क्लेम करने के लिए कस्टमर को दो से पांच साल इंतजार करना पड़ता है। नए नियमों के मुताबिक, कस्टमर 'ए' कंपनी में दो साल बने रहने के बाद उससे तंग आ गया है तो 'बी' कंपनी में जा सकता है और 'बी' कंपनी में उसका स्टेटस नए कस्टमर का नहीं, बल्कि दो साल पुराने कस्टमर का होगा। फायदे भी उसी हिसाब से मिलेंगे।

कंपनियां कुछ बीमारियों के लिए क्लेम चार साल बाद देती हैं। इसे प्री-एग्जिस्टिंग कवर कहा जाता है और इस फायदे के लिए कस्टमर उसी कंपनी में बने रहता है। अब नई कंपनी में भी यह फायदा लिया जा सकेगा। मतलब अगर पुरानी कंपनी में आपने दो साल पूरे कर लिए हैं तो तो नई कंपनी ऐसे कवर आपको चार की बजाय दो साल बाद ही दे देगी।

पॉलिसी लेने के बाद अगर आप पूरे साल किसी तरहका क्लेम नहीं करते हैं तो अगले प्रीमियम में 5 से 50 फीसदी डिस्काउंट मिलता है। डिस्काउंट सालाना आधार पर मिलता है। कुछ कंपनियां हेल्थ चेकअप के वाउचर भी देती हैं। पोर्टेबिलिटी के बाद अब आप इस फायदे को नई कंपनी में भी कैरी-फॉरवर्ड कर सकते हैं।

कन्ज़यूमर को इंश्योरेंस कंपनी बदलने के लिए अपनी पॉलिसी एक्सपायर होने के कम-से-कम 45 दिन (डेढ़ महीना) पहले बताना होगा।

पोर्टेबिलिटी का सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को होगा, जो स्वस्थ हैं और उन्होंने अपनी कंपनी से कोई क्लेम नहीं लिया है। ऐसे लोगों को अगर लगता है कि उनकी कंपनी की टर्म्स खराब हैं और प्रीमियम महंगा, तो वे दूसरी कंपनी में आसानी से शिफ्ट कर सकेंगे। जो लोग अस्वस्थ हैं, उन्हें इसका फायदा ज्यादा नहीं होगा।

जिन लोगों को ग्रुप पॉलिसी (कंपनी की तरफ से मिला हेल्थ इंश्योरेंस) मिली हुई है, उन्हें भी इसका बहुत फायदा होगा। ऐसे लोग ग्रुप पॉलिसी से बाहर आकर उसी कंपनी से इंडिविजुअल पॉलिसी ले सकेंगे। अगर कोई शख्स रिटायर हो रहा है या कंपनी छोड़ रहा है तो ग्रुप पॉलिसी देने वाली कंपनी ही उसे कवर देगी। हां उसकी टर्म-कंडिशंस कंपनी तय करेगी। अब तक रिटायरमेंट के वक्त कंपनी छोड़ने पर उस उम्र में कोई कंपनी पॉलिसी नहीं देती थी। ऐसे मामलों में अब ग्रुप पॉलिसी देने वाली कंपनी ही पॉलिसी दे देगी। प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज का चक्कर खत्म होगा क्योंकि उसी कंपनी की ग्रुप पॉलिसी में वह शख्स कवर्ड था और प्री-एग्जिस्टिंग वाले चार साल वह पहले ही पूरे कर चुका है।

पॉलिसी लेने के टॉप 5 टिप्स 

1. टीपीए: आजकल कुछ कंपनियां इनहाउस टीपीए पर ही क्लेम सेटलमेंट के लिए भरोसा कर रही हैं। ये कंपनियां इस काम को बाहर के टीपीए को आउटसोर्स नहीं करतीं। ऐसी कंपनी चुनना बेहतर माना जाता है, जिसका इनहाउस टीपीए है। ऐसी कंपनियों में शामिल हैं बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस, स्टार हेल्थ ऐंड एलाइड इंश्योरेंस, 

आईसीआईसीआई लॉम्बर्ड और मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस। वैसे कस्टमर का यह कानूनी हक है कि वह अपनी पसंद का टीपीए चुन सके। साथ ही हक यह भी है कि वह टीपीए चुने ही न। वह कंपनी से यह कह सकता है कि मुझे टीपीए नहीं चाहिए और इस वजह से आपका जो खर्च मेरे ऊपर कम हो रहा है, उसके बदले आप मेरा प्रीमियम कम कर दें, लेकिन ये दोनों ही बातें कागजी हैं। प्रैक्टिकली ऐसा होता नहीं है। कंपनी आपको टीपीए देगी ही और अपने मुताबिक ही देगी। टीपीए कौन सा हो, इसकी जानकारी आपके एजेंट आपको दे सकते हैं। वैसे गंगाराम अस्पताल के डायरेक्टर (फाइनैंस) रक्षा और टीटीके को अच्छा टीपीए मानते हैं। 

2. अस्पतालों का नेटवर्क: जिस कंपनी से पॉलिसी ले रहे हैं, उसका अस्पतालों का नेटवर्क देखें। जरा सोचें, अगर आप बीमार पड़ गए, तो आपकी जगह के पास पास कौन से कुछ ऐसे अस्पताल हैं जहां आप जाना प्रेफर करेंगे। अगर ये अस्पताल उस कंपनी की लिस्ट में हैं, तभी पॉलिसी लेनी चाहिए। 

3. अस्पताल से रिश्ते: हालांकि जानना थोड़ा मुश्किल है फिर भी यह देखें कि टीपीए का अस्पतालों से रिश्ता कैसा है। मसलन अस्पताल का पेमेंट निबटाने में टीपीए कितना तेज है। अगर वह इस मामले में ठीक है और अस्पतालों का पैसा लटकाता नहीं है तो अस्पताल ऐसे टीपीए के केस को अच्छी तरह से हैंडल करते हैं। लेकिन जो डिफॉल्टर टीपीए हैं, उनके कस्टमर को अस्पतालों में कैशलेस इलाज कराने में दिक्कत होती है। ये टीपीए अस्पताल का पैसा समय से नहीं देते। हां ऐसे मामलों में अस्पताल बिल देकर इलाज कर देते हैं, जिसे मरीज बाद में अपने टीपीए से रीइंबर्स करा सकता है। 

4. फैमिली फ्लोटर या इंडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस: पॉलिसी दो तरह की आती हैं। पहली इंडिविजुअल पॉलिसी और दूसरी फैमिली फ्लोटर। आमतौर पर फैमिली फ्लोटर प्लान लेने की बात कही जाती है, लेकिन इस प्लान की भी अपनी खामियां होती हैं। पहले दोनों का फर्क समझ लेते हैं। एक परिवार में तीन सदस्य हैं। तीनों ने अलग-अलग इंडिविजुअल पॉलिसी ली हैं 2-2 लाख रुपये की। इसका मतलब यह हुआ कि इनमें से हर शख्स दो लाख तक का क्लेम कर सकता है। अगर यही परिवार इंडिविजुअल की बजाय 4 लाख रुपये का फैमिली फ्लोटर प्लान ले ले, तो तीनों में से कोई भी शख्स इन चार लाख रुपये को क्लेम कर सकता है। यानी कुल अमाउंट चार लाख है और इसे किसी भी तरह से तीनों लोग क्लेम कर सकते हैं।

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फैमिली फ्लोटर की कुछ कमियां

ऊपरी तौर पर फायदेमंद नजर आने वाले फैमिली फ्लोटर प्लान की कुछ कमियां भी हैं।

परिवार के सबसे बड़े शख्स की उम्र के हिसाब से इस पॉलिसी की कीमत तय होती है। जितनी ज्यादा उम्र, उतनी महंगी पॉलिसी।

पॉलिसी तभी तक रिन्यू होगी, जब तक कि परिवार का सबसे ज्यादा उम्र वाला शख्स कंपनी द्वारा निर्धारित उम्र तक नहीं पहुंचता।

कई पॉलिसी बाजार में ऐसी भी हैं जो सबसे ज्यादा उम्र के सदस्य की मौत की स्थिति में बचे हुए लोगों को कवर देना बंद कर देती हैं।

केवल बेहद नजदीकी लोगों को ही फैमिली माना जाताहै। फैमिली में भाई, बहन या पैरंट्स तक को शामिल नहींकिया जाता। 

जैसे ही बच्चा 25 साल का होगा, वह पॉलिसी से बाहर हो जाएगा क्योंकि फिर उसे फैमिली का हिस्सा नहीं माना जाएगा। इसलिए अगर डिपेंडेंट पैरंट्स हैं तो फैमिली फ्लोटर आपको सूट नहीं करती।

अगर किसी परिवार का सबसे बड़ा शख्स 40 साल से ऊपर का है तो उसके लिए भी फैमिली फ्लोटर ठीक नहीं है।
जो लोग यंग हैं, उन्हें फैमिली फ्लोटर पॉलिसी लेनी चाहिए क्योंकि यह इंडिविजुअल से थोड़ी सस्ती पड़ती है।

इंडिविजुअल पॉलिसी में आमतौर पर रिन्यू कराने के लिए कोई अधिकतम उम्र सीमा नहीं होती, जबकि फैमिली फ्लोटर में होती है। 

5. लिंक-अप का चक्कर: कई पॉलिसियों में रूम रेंट लिंक-अप होता है। ऐसी पॉलिसियों से बचना चाहिए। मसलन आमतौर पर रूम रेंट सम इंश्योर्ड का 1 फीसदी होता है। किसी की 1 लाख की पॉलिसी पर उसे 1000 रुपये ही डेली रूम रेंट के मिलेंगे, लेकिन अगर उसने रूम 2 हजार रुपये का ले लिया तो उसे बाकी 1000 रुपये जेब से देने होंगे। इसी के साथ डॉक्टर की कंसल्टेशन, नर्सिंग आदि के खर्च भी कंपनी आधे ही वहन करेगी। आधा पैसा मरीज को जेब से देना होगा। यह उसी अनुपात में होगा, जिस अनुपात में आपने लग्जरी ली है यानी जितना ज्यादा अच्छा रूम लिया है। साथ ही यह भी देखना चाहिए कि पॉलिसी में को-पेमेंट का क्लॉज न हो। मसलन पॉलिसी में यह न हो कि कंपनी कुल खर्च का सिर्फ 80 फीसदी ही पे करेगी और बाकी रकम मरीज खुद देगा। 

परिवार के लिए कराना है हेल्थ इंश्योरेंस, पहले जान लें फैमिली फ्लोटर प्‍लान के फायदे और उनकी खासियत


छोटी सी बीमारी आपको लाखों रुपए की चपत लगा सकती है। जीवन की इन्‍हीं अनिश्चितताओं से रक्षा के लिए हेल्‍थ इंश्‍योरेंस एक बेहतरीन विकल्‍प है।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के साथ ही इलाज की लागत भी तेजी से बढ़ रही है। छोटी सी बीमारी आपको लाखों रुपए की चपत लगा सकती है। जीवन की इन्‍हीं अनिश्चितताओं से रक्षा के लिए हेल्थ इंश्योरेंस एक बेहतरीन विकल्‍प है। लेकिन स्‍वास्‍थ्‍य लागत में वृद्धि के साथ ही हेल्‍थ पॉलिसी की प्रीमियम दरें भी लगातार बढ़ रही हैं। यदि आपके परिवार में कम से कम चार सदस्‍य हैं। तो आपको 4 इंडिविजुअल पॉलिसी के लिए कुल 10 हजार रुपए खर्च करने होंगे। हालांकि इसका एक सस्‍ता विकल्‍प है फैमिली फ्लोटर प्‍लान। हर सदस्‍य के लिए अलग-अलग पाॅलिसी लेने की बजाये आप एक पॉलिसी में सभी को शामिल कर सकते हैं। इंडिविजुअल पॉलिसी के मुकाबले इसकी लागत भी 30 से 50 फीसदी कम आती है। आज इंडिया टीवी पैसा आपको बताने जा रहा है फैमिली फ्लोटर प्‍लान के फायदे और उनकी खासियत के बारे में।


क्‍या होती है फैमिली फ्लोटर पॉलिसी

जैसा कि नाम से पता चलता है, यह पॉलिसी पूरे परिवार को शामिल करती है। आमतौर पर बीमा कंपनियां आपकी फैमिली के साइज, सदस्‍यों की उम्र और बीमा की राशि के आधार पर फैमिली फ्लोटर प्‍लान पेश करती हैं। आम तौर पर इस पॉलिसी में पति-पत्‍नी और बच्‍चों को कवर किया जाता है। मैक्‍स बूपा जैसी कंपनियां माता पिता को भी कवरेज देती हैं। इसके तहत परिवार के सभी सदस्‍यों को बीमा राशि का फायदा मिलता है। हालांकि आप बीमा पॉलिसी के टॉप-अप की मदद से अपनी कवरेज को और भी बढ़ा सकते हैं।

क्‍या हैं इसके फायदे

फैमिली फ्लोटर पॉलिसी का सबसे बड़ा फायदा इसकी कम लागत है। यह इंडिविजुअल पॅालिसी से हमेशा सस्‍ती ही पड़ती है। वहीं इसमें सामान्‍य पॉलिसी के बेनिफिट 

जैसे हॉस्पिटलाइजेशन फीस, डॉक्‍टर फीस, एंबुलेंस, मेडिकल प्रोसिजर का खर्च, प्री एवं पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन का खर्च आदि समाहित होता है। वहीं कुछ पॉलिसी में परिवार के सभी सदस्‍यों के हैल्‍थ चैकअप का भी प्रोविजन रहता है।


कम कीमत में परिवार की सुरक्षा

फैमिली फ्लोटर पॉलिसी की कम लागत इसका सबसे बड़ा फायदा है। मान लीजिए एक परिवार में 4 सदस्‍य हैं। सभी की 2 लाख रुपए की इंडिविजुअल पॉलिसी करवाने जाते हैं तो आपको 10 हजार रुपए खर्च करने होंगे। लेकिन यदि आप इसके मुकाबले 4 लाख का फ्लोटर प्‍लान लेने जाते हैं तो आपकी लागत सिर्फ 7 हजार रुपए ही आएगी। इसकी खास बात यह है कि यदि परिवार के किसी एक सदस्‍य को इलाज की जरूरत पड़ती है तो पूरे परिवार के बीमे की रकम उस पर खर्च की जा सकती है।

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मिलता
है रिस्‍टोरेशन बेनिफिट का फायदा

फैमिली फ्लोटर पॉलिसी के साथ लोगों को इसी बात की आशंका होती है कि यदि किसी एक परिवार के सदस्‍य पर बीमा की पूरी राशि खर्च हो जाती है तो शेष परिवार के सदस्‍यों का क्‍या होगा। लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ज्‍यादातर बीमा कंपनियां फैमिली फ्लोटर प्‍लान पर रीस्‍टोरेशन बेनिफिट देती हैं। जिसके तहत बीमा कंपनी शेष बचे हुए समय के लिए बीमा की राशि को दोबारा टॉप-अप कर देती हैं।

जॉइंट फैमिली के लिए हेल्थ कवर


प्रीति कुलकर्णी

कई लोगों के पास अपनी फैमिली के लिए जरूरी हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है। दरअसल, कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम पर नुक्सान कम करने के लिए को-पेमेंट क्लॉज, सब लिमिट और सीमा तय करने समेत तमाम तरह के नियम लगा देती हैं। इस वजह से इंश्योरेंस की लागत बढ़ जाती है। कहने की जरूरत नहीं है कि अगर आपकी फैमिली का हेल्थ कवर काफी नहीं है, तो आप परिवार के कई सदस्यों खासकर बुजुर्ग माता-पिता की जान जोखिम में डाल रहे हैं। 
आप इस मुश्किल से दो तरीके से निपट सकते हैं। पहला यह कि आप परिवार के हर सदस्य के लिए अलग-अलग हेल्थ इंश्योरेंस कवर लें। अगर पैसे की दिक्कत से ऐसा करना संभव नहीं है, तो फैमिली फ्लोटर का ऑप्शन आपके पास है, जिसमें पूरे परिवार को हेल्थ कवर मिलता है। हालांकि, ज्यादातर फैमिली फ्लोटर प्लान में दो एडल्ट और दो बच्चों को कवर मिलता है। इसका मतलब यह है कि बुजुर्ग माता-पिता इसमें फिर छूट जाएंगे। 

हालांकि, आपके पास तीसरा ऑप्शन भी है, जिससे न सिर्फ आपके माता-पिता को कवर मिलेगा, बल्कि सास-ससुर, भाई-बहन और यहां तक कि आपके कजिन भी इसके दायरे में आ जाएंगे। मैक्स बुपा के सीएफओ नीरज बसूर ने बताया, 'कस्टमर रिसर्च से हमें पता चला कि लोग खुद से ज्यादा अपने परिवार के बाकी सदस्यों के हेल्थ के प्रति चिंतित रहते हैं। साथ ही, जॉइंट फैमिली सिस्टम अभी भी देश में स्ट्रॉन्ग है।' एगॉन रेलिगेयर लाइफ के डायरेक्टर (मार्केटिंग) हर्षल शाह ने बताया, 'हमारी रिसर्च में पाया गया कि डिपेंडेंट पैरंट्स और सास-ससुर का हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज बेहद कम था। हाल में कंपनी की ओर से लॉन्च किए गए हेल्थ प्लान में माता-पिता, सास-ससुर और बाकी रिश्तेदारों को कवर के दायरे में लाया गया है।' 

इसी तरह, ओरिएंटल जनरल इंश्योरेंस का फैमिली फ्लोटर प्लान हेल्थ इंश्योरेंस लेने वाले को माता-पिता या सास-ससुर में किसी एक को इसमें शामिल करने की इजाजत देता है। मैक्स बुपा कई रिश्तेदारों के कवर को यूएसपी बताकर अपने प्रॉडक्ट को प्रमोट कर रही है। इंश्योरेंस पोर्टल medimanage.com में ई-बिजनेस के प्रमुख महावीर चोपड़ा ने बताया, 'ऐसे कवर देश के जॉइंट फैमिली सिस्टम को ध्यान में रखकर पेश किए गए हैं, जहां अब भी सभी सदस्यों के बदले परिवार का मुखिया फैसला करता है।' 
कैसे काम करते हैं ये कवर 

इस कवर का एक बड़ा मकसद सम अश्योर्ड की चुनौती से निपटना होता है, जो एक साल में हो जाता है, खासतौर पर तब जब इस प्लान के तहत सीनियर सिटीजन या खराब सेहत वाले लोगों का कवर है। ऐसे ऑफर्स में कई तरह के वेरिएशन होते हैं।




जानें, कितना जरूरी है हेल्‍थ इंश्‍योरेंस कराना, कैसे देता है आपको फायदा

कहते हैं वक्‍त का कोई भरोसा नहीं होता, कब, कैसे पलटी मार जाए आप कह नहीं सकते। ऐसे में अपने और अपने परिवार को मुसीबत की घड़ी से बचाने के लिए जरूरी है कि आप अपना हेल्‍थ एंश्‍योरेंस कराएं। एक हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी एक बीमा कंपनी और एक व्यक्ति या एक समूह के बीच का अनुबंध होता है, जिसमें कंपनी के निर्देशों के अनुसार हमें उसे एक प्रीमियम का भुगतान करना होता है।

आज के समय में महंगे होते इलाज के कारण हेल्‍थ इंश्‍योरेंस एक जरूरत बन गया है। आजकल छोटे से छोटे इलाज के लिए लाखों रुपए मिनट में खर्च हो जाते हैं। एक व्‍यक्ति आज स्‍वस्‍थ है और कल बीमार नहीं होगा इसकी गारंटी नहीं ली जा सकती। भविष्‍य में क्‍या होगा इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में हेल्‍थ इंश्‍योरेंस हमें आवश्यक वित्तीय राहत प्रदान करता है।

पांच साल से लेकर 75 साल (आयु सीमा पॉलिसी के आधार पर थोड़ा भिन्न हो सकती है)तक का व्‍यक्ति अपना हेल्‍थ एंश्‍योरेंस करा सकता है। हेल्‍थ एंश्‍योरेंस स्किम या तो निजी हो सकती है या फिर ग्रुप स्किम हो सकती है जो आपकी कपंनी द्वारा आपको उपलब्‍ध कराई जाती है।

पॉलिसी लेने के कुछ समय तक इंश्‍योरेंस में कई चीजें शामिल नहीं की जाती। लेकिन हार्ट अटैक के दौरान आया खर्च,  स्ट्रोक, चोट, मातृत्व आपात स्थिति, दुर्घटना के कारण शरीर के अन्य हिस्‍सों को हुआ नुकसान, दवाई आदि का खर्च पॉलिसी कवर करती है।

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आपकी पॉलिसी के पहले साल में कुछ बीमारियों का इलाज शामिल नहीं होता। यह लिस्‍ट हर कंपनी की अलग-अलग हो सकती है। 

सबसे पहले आपको पॉलिसी को समझना होगा और आम स्वास्थ्य बीमा प्रावधानों को जानना होगा। ये जानना बेहद जरूरी है कि आपकी पॉलिसी क्‍या-क्‍या चीजें कवर कर रही है और आप अपने लिए क्‍या भुगतान कर रहे हैं। 

हेल्‍थ इंश्‍योरेंस पॉलिसी आमतौर पर बोर्डिंग, नर्सिंग और डाइगनोटिक खर्च कवर करती है, इसमें हॉस्पिटल या नर्सिग होम का रूम रेंट, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट, डॉक्‍टर आदि की फीस भी शामिल होती है। कुछ पॉलिसी हर दिन के लिए एक निश्चित नकद राशि का भुगतान करती हैं, जिसमें आप अपनी पसंद के किसी भी हॉस्पिटल में इलाज करा सकते हैं।

यदि आप लगातार लम्‍बे समय से बीमार चले आ रहे हैं तो हो सकता है इंश्‍यारेंस पॉलिसी में उस बीमारी को कवर न किया जाए। दुर्घटना से लगी चोट को छोड़कर पॉलिसी लेने के शुरूआती 30 दिनों में अस्पताल में भर्ती होने पर आने वाले खर्च को भी कई बार कवर नहीं किया जाता। ये भी हो सकता है कुछ पॉलिसी एक सीमित लॉक-इन पीरियड के बाद इन्‍हें कवर करें। 

विशिष्ट रोगों के लिए फिलहाल उपलब्ध व्‍यक्तिगत, फैमिली, ग्रुप इंश्‍योरेंस स्किम, सिनियर सिटीजन इंश्‍योरेंस स्किम, लॉन्‍ग टर्म हेल्‍थ केयर और इंश्‍योरेंस कवर योजनाएं मौजूद हैं।

हेल्‍थ इंश्‍योरेंस खरीदते वक्‍त जान लें कितनी हैल्‍दी है आपकी पॉलिसी, इन 10 बातों का रखें ख्‍याल


हेल्‍थ पॉलिसी लेते समय आपको इन बातों का ख्‍याल रखना चाहिए, जिससे आप पर मेडिकल एक्‍सपेंस का बोझ न पड़े साथ ही जरूरत के वक्‍त क्‍लेम का पूरा पैसा मिल सके।

पॉलिसी लेने से पहले क्‍लेम के क्‍लॉज पढ़ लें

पॉलिसी लेते वक्‍त हम अक्‍सर सिर्फ प्रीमियम अमाउंट ही देखते हैं। जबकि कई बार आपका एजेंट पॉलिसी के पीछे के क्‍लॉज नहीं बताता। कई पॉलिसी में कंपनी पूरे भुगतान में कटौती का क्‍लॉज डाल देती है। जैसे पॉलिसीधारक को क्‍लेम के 1/5वें हिस्से का भुगतान खुद करना होगा। ऐसे में पॉलिसी के सभी क्‍लॉज ध्‍यान से पढ़ लें।

कैशलैस अस्पतालों की लिस्‍ट भी जांच लें

अक्‍सर हम हेल्‍थ इंश्‍योरेंस लेते वक्‍त नेटवर्क हॉस्पिटल पर ध्‍यान ही नहीं देते। नेटवर्क हॉस्पिटल से बाहर इलाज करवाते वक्‍त हमें इलाज का पूरा पैसा अस्‍पताल को भुगतान करना पड़ता है। इसके बाद हमें इलाज से जुड़े सभी दस्‍तावेज और रिपोर्ट कंपनी के पास भेजनी होती है। इसमें महीने भर से अधिक का समय लग सकता है। ऐसे में पॉलिसी लेते वक्‍त उसी कंपनी का चयन करें जिसके कैशलैस सुविधा वाले नेटवर्क आपके शहर में हों।

पॉलिसी में कवर हों प्री एवं पोस्‍ट हॉस्पिटलाइजेशन

हमारी बीमारी का करीब 50 फीसदी खर्च ओपीडी, प्री और पोस्‍ट होस्‍पिटलाइजेशन पर होता है। ऐसे में पॉलिसी लेते वक्‍त यह जरूर देख लें कि वह कंपनी आपको कितने समय का प्री एंड पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन के खर्च की भरपाई करने के लिए पॉलिसी में पर्याप्त कवर दे रही है कि नहीं।

ऑर्गन ट्रांसप्‍लांट में हो डोनर का भी कवरेज

आज के समय में सबसे महंगे इलाज में ऑर्गन ट्रांसप्‍लांट भी शामिल है। अक्‍सर पॉलिसियां सिर्फ उसी व्‍यक्ति के खर्च का भुगतान करती हैं, जिसका इंश्‍योरेंस है। लेकिन ऑर्गन लेते वक्‍त हमें दूसरे व्‍यक्ति का भी खर्च उठाना पड़ता है। ऐसे में ध्‍यान रखें की आपकी पॉलिसी में डोनर के इलाज का खर्चा भी शामिल हो।

इलाज के समय लीव विथआउट पे का भी हो भुगतान

लंबे इलाज के दौरान अक्‍सर मरीज पर दोहरी मार वहां से भी पड़ती है, जहां वह जॉब करता है। एक महीने से लंबी छुट्टी में कंपनी आपको सैलरी का भुगतान नहीं करती। ऐसे में इलाज के अलावा दूसरे खर्चों की भरपाई मुश्किल हो जाती है। बहुत सी इंश्‍योरेंस कंपनियां हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान हर दिन के हिसाब से पैसों का भुगतान करती हैं। ऐसे में यदि पॉलिसी में यह अतिरिक्त कवर लेते हैं तो यह सुविधा आपके लिए फायदेमंद होगी।

घर में हुए इलाज का भी मिलता है खर्च

बहुत से इलाज ऐसे होते हैं, जिनके लिए अधिक समय तक हॉस्पिटल में रहने की जरूरत नहीं। इलाज घर पर भी करवा सकते हैं। ऐसे में पॉलिसी लेते वक्‍त इस बात का भी ध्‍यान रखें कि उसमें डॉमिसिलियरी ट्रीटमेंट या फिर घर में किए गए इलाज का खर्चा भी शामिल हो।

पॉलिसी में शामिल हो डे केयर

अक्‍सर हेल्‍थ पॉलिसी देने वाली इंश्‍योरेंस कंपनियां कम से कम 24 घंटे हॉस्पिटलाइजेशन पर ही इंश्‍योरेंस कवर मुहैया करवाती हैं। लेकिन बहुत सी बीमारी ऐसी होती हैं जिनके लिए 24 घंटें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। ऐसी पॉलिसी लें जो अधिकांश डे केयर प्रॉसिजर को कवर करती है।

पॉलिसी लेते वक्‍त जरूर करें कंपेरिजन

आज बहुत सी वेबसाइट हैं जो कि प्राइज के साथ ही हेल्‍थ इंश्‍योरेंस के कवरेज का भी कंपेरिजन पेश करती हैं। इन वेबसाइट्स या फिर पत्रिकाओं की मदद जरूर लें। अलग अलग कंपनियों के प्लान की तुलना कर के  देखें कि ज्यादा प्रीमियम कौन दे रहा है। हमेशा विश्वसनीय इंश्योरर का ही चयन करें।

फैमली फ्लोटर पॉलिसी के क्‍लाज ध्‍यान से पढ़ें

इसे चुनने से पहले सुनिश्चित कर लें पॉलिसी की कुल कीमत आसानी से फलोट हो सके और साल के कभी भी किसी भी सदस्य को मिल सके। कई फैमली फ्लोटर पॉलिसी में 100 फीसदी राशि प्रोपोजर को इंश्योर की जाती है, लेकिन 50 फीसदी जीवनसाथी और 25 फीसदी बच्चों के लिए सीमित होती है। ऐसी पॉलिसी लेने से बचें।

को-पेमेंट क्लॉज वाली पॉलिसी से बचें

कुछ इंश्योरर अपने नियम और शर्तों में को-पेमेंट क्लॉज जोड़ा देते हैं। को-पेमेंट पॉलिसी के सस्ते प्रिमियम होते है क्योंकि आप बिना किसी शर्त के एक निश्चित राशि देने के लिए तैयार हो जाते हैं। कम प्रीमियम देने से आप भविष्य में अपने लिए एक बड़ी समस्या का सामना कर सकते हैं।

मेडिक्लेम पॉलिसी खरीदने में इन बातों का रखें ध्यान

आज लगातार बढ़ते मेडिकल खर्च को देखते हुए मेडिक्लेमपॉलिसी जल्द से जल्द लेने में समझदारी है. कुछ दिन पहले बाइक से हुई दुर्घटना में अक्षत रस्तोगी की पैर की हड्डी टूट गयी. जब वे अस्पताल पहुंचे तो उन्हें पता लगा उनके सिर में हेयर लाइन फ्रैक्चर भी हुआ है. इलाज का खर्च दो-तीन लाख रुपये आ सकता है. रस्तोगी को यह पैसा अपनी जेब से खर्च करना पड़ा. 

पर्सनल फाइनेंस के बारे में और जानें 

क़ानूनी सलाह उपलब्ध कराने वाली फर्म कंज्यूमर साथी के सीईओ मानव बजाज ने कहा, ‘स्वास्थ्य पर खर्च लगातार बढ़ रहा है और अब मामूली बीमारियों के इलाज में भी लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं. ऐसे में समय से हेल्थ इंश्योरेंस लेना जरूरी है. यह आपकी जेब पर पड़ने वाले भार को कम करने में मदद करता है.’ 


क्या है हेल्थ इंश्योरेंस की जरूरत 

केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि मेडिकल इमरजेंसी के मामले में 80 फीसदी केस पैसे की दिक्कत की वजह से बिगड़ जाते हैं. किसी दुर्घटना की स्थिति में न सिर्फ इलाज पर आपको पैसे खर्च करने पड़ते हैं, बल्कि आपकी कमाने की क्षमता भी घट जाती है. इस हिसाब से दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पर दोहरी मार पड़ती है. 

हेल्थ इंश्योरेंस इस स्थिति में आपके लिए मददगार साबित होता है. सर्टिफाइड फाईनेंशियल प्लानर और सृजन फाइनेंशियल की संस्थापक दीपाली सेन ने कहा,’हेल्थ इंश्योरेंस के लिए नियमित अंतराल पर आप थोड़ा-थोड़ा प्रीमियम चुकाकर खुद के लिए मेडिकल खर्च की व्यवस्था कर सकते हैं. यह आज के दौर में जरूरी है.’ ऐसे ही ओर अछे articles के लिए जुड़े रहे ( https://normaladvices.blogspot.com ) से।

हम आपको हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी 7 अहम बातें बता रहे हैं: 

1.पैसे बर्बाद नहीं हो रहे हैं. 

बहुत से लोग मेडिक्लेम या हेल्थ इंश्योरेंस लेने को पैसे की बर्बादी मानते हैं. 

सर्टिफाइड फानेंशियल प्लानर सामंत सिक्का ने कहा, ‘अगर आपको इसका क्लेम लेने की जरूरत नहीं पड़े तो बहुत अच्छी बात है. स्वस्थ रहने और संभलकर रहने का कोई विकल्प नहीं, लेकिन अगर कभी आपको जरूरत पड़ ही जाए तो यह आपकी जेब में छेद होने से बचा सकता है. मामूली सा प्रीमियम चुकाने के बाद पांच-सात लाख रुपये का हेल्थ कवर लेना समझदारी की बात है. 

2.तुलना करें, फिर खरीदें स्वास्थ्य बीमा 

हेल्थ प्लान लेने से पहले उसकी शर्त को ध्यान से समझें. अगर खुद पढ़कर समझ नहीं आ रहा हो तो किसी जानकर की मदद लें. ऑनलाइन साईट पर तुलना करने की और सभी कंपनियों के प्लान की डीटेल जानकारी उपलब्ध है. ध्यान से हर क्लॉज को समझें, फिर प्रीमियम चुकाएं. गंभीर बीमारी, पहले से मौजूद बीमारी और एक्सीडेंट के मामले में कंपनी की देनदारी को समझकर प्लान खरीदें. 

3.जल्द खरीदने पर प्रीमियम कम 

निवेश के मामले में कहा जाता है कि जल्द शुरुआत से बड़ी संपत्ति बनाने में मदद मिलती है. हेल्थ कवर के मामले में कहा जाता है कि जल्द कवर लेंगे तो कम प्रीमियम चुकाना पड़ेगा. अगर आप 40 साल की उम्र से पहले कवर लेते हैं तो आपको बिना शर्त के अधिकतम फायदा मिल सकता है. दीपाली ने कहा, ‘युवाओं को आमतौर पर बीमारियां कम होती हैं. इस लिहाज से बीमा देने वाली कंपनियां उनके लिए प्रीमियम कम रखती हैं.’ 

हर साल इसे समय से रिन्यू करते रहने से आपको नो क्लेम बोनस का लाभ मिलता रहेगा. एक मध्य आय वर्ग के शादीशुदा व्यक्ति को कम से कम पांच लाख रुपये का कवर लेना चाहिए. 

4.ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है 

हेल्थ इंश्योरेंस लेते वक्त बीमा कंपनी को अपने मेडिकल रिकॉर्ड के बारे में सही-सही जानकारी दें. अगर आप कुछ गलत जानकारी देते हैं तो बीमा कंपनी आपको क्लेम देने से मना कर सकती है, जिससे इलाज के दौरान आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. 

सिक्का ने कहा, ‘हेल्थ प्लान लेते वक्त पुरानी बीमारियों को छुपाना गलत है. बीमा कंपनी को साफ़-साफ़ बताएं भले ही आपको प्रीमियम अधिक चुकाना पड़े. सभी जानकारी ले लें और फिर सोच समझकर फैसले लें.’ सिक्का ने कहा कि इलाज के वक्त या उसके बाद क्लेम खरिज हो जाने का दिमाग पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए इसकी नौबत ही न आने दें. 

5. क्या शामिल नहीं है, इसे जानना जरूरी 

मेडिकल इंश्योरेंस में कुछ चीजें शामिल नहीं होती. हर बीमा कंपनी के अपने नियम होते हैं और उस हिसाब से वह कंपनी पॉलिसी डिजाइन करती हैं. पॉलिसी खरीदने से पहले यह समझ लें कि उसमें क्या शामिल नहीं है. कुछ पालिसी में राइडर के तहत गंभीर बीमारियों का कवर लिया जा सकता है तो कुछ में घरेलू वजहों से हुई दुर्घटना के मामले में कवरेज नहीं मिलती. इन सब चीजों को क्लियर कर ही पॉलिसी खरीदें. 

6. पहले से जारी बीमारी पर पॉलिसी न लें 

अगर आपने कोई क्रिटिकल इलनेस प्लान लिया है जिसमें लंबी अवधि तक इलाज की जरूरत है तो इस स्थिति में क्लेम करने का मतलब आपके प्रीमियम का लगातार बढ़ते जाना है. नयी पॉलिसी लेने के इस जाल में न फंसें. बजाज ने कहा, ‘ऐसी पॉलिसी लें जिसे जीवन में किसी भी समय रिन्यू कराया जा सके.

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हेल्थ कवर का उद्देश्य बड़ी उम्र में बीमारियों के इलाज पर आने वाले खर्च से वित्तीय सुरक्षा है, इसका ध्यान रखें.’ बजाज ने कहा कि बड़ी उम्र में बीमारियों का हमला भी अधिक होता है और आम तौर पर इलाज कराने के लिए पैसे भी नहीं होते. 

7. लिमिट/सब लिमिट वाला प्लान ना लें 

अस्पताल में कमरे के किराये की सीमा जैसी लिमिट से बचें. यह आपके हाथ में नहीं है कि आपके इलाज के दौरान आपको किस कमरे में रखा जाय. खर्च के लिए बीमा कंपनी द्वारा कोई सब लिमिट तय किया जाना आपके लिए ठीक नहीं है.पॉलिसी खरीदते वक्त इस बात का ध्यान रखें और ऐसी पॉलिसी न लें. 

ले रहे हैं क्रिटिकल इलनेस कवर, 5 बातों का रखें ध्‍यान


गंभीर बीमारी के इलाज के अलावा दूसरी जरूरतें भी होती हैं कवर...

आजकल की टेंशन भरी और भागदौड़ वाली जिंदगी में बीमारियों का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसके चलते लोग हेल्‍थ इंश्‍योरेंस कराते हैं लेकिन कई बीमारियां ऐसी भी होती हैं, जिनके मोटे खर्चे का बोझ आम हेल्‍थ इंश्‍योरेंस नहीं उठा पाता। ऐसे में काम आता है क्रिटिकल इलनेस कवर। इस कवर के तहत कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने पर कम पैसे में 15 से 20 लाख रुपए तक का कवर मि‍ल जाता है। अगर आप भी क्रिटिकल इलनेस कवर लेने की सोच रहे हैं तो कुछ बातों को जान लेना बेहद जरूरी है- 

आखिर क्‍या है यह कवर

- इस कवर के तहत आपको या आपके परिवार को गंभीर बीमारी होने पर बीमा कंपनी एक तय राशि का भुगतान करती है। इससे बीमारी का इलाज कराने के अलावा दूसरी जरूरतें भी पूरी की जा सकती हैं। बीमित व्यक्ति को इस इंश्‍योरेंस का फायदा सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने पर ही नहीं, बल्कि भर्ती होने से पहले और बाद के खर्च में भी मिलता है।

- बीमा नियामक इरडा के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, क्रि‍टि‍कल इलनेस इंश्‍योंरेंस में कम से कम 12 गंभीर बीमारियों का कवर करना जरूरी है। आम तौर पर क्रिटिकल इलनेस प्‍लान में दिल की बीमारी, मल्‍टीपल सिरोसिस, स्‍ट्रोक, कैंसर, मेजर ऑर्गन ट्रांसप्‍लांट, किडनी फेल्‍योर, बाईपास सर्जरी और पैरालिसिस जैसी बीमारियां कवर होती हैं। कुछ बीमा कंपनियों के क्रिटिकल इलनेस प्‍लान में इससे ज्‍यादा बीमारियां भी कवर हो सकती हैं। 

दो तरह से ले सकते हैं यह इंश्‍योरेंस

क्रिटिकल इलनेस कवर को आप दो तरह से ले सकते हैं। पहला एकल इंश्‍योरेंस के तौर पर यानी इसके अलावा आपके पास कोई और इंश्‍योरेंस न हो। दूसरा किसी अन्‍य पॉलिसी होने के बावजूद एडिशनल बेनिफिट या राइडर पॉलिसी के तौर पर। जब आप एकल आधार पर क्रिटिकल इलनेस कवर लेते हैं तो इस इंश्‍योरेंस की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती, वहीं राइडर के तौर पर इसकी लिमिट बेस पॉलिसी के कवर के तहत ही रहती है। 

पहले से है बीमारी, उनको भी मि‍लता है कवर 

कुछ बीमा कंपनियां ऐसी भी हैं, जो पहले से मौजूद बीमारियां भी कवर करती हैं। ऐसे में पॉलिसी लेते समय ध्यान रखें कि यह सुविधा आपकी पॉलिसी में है या नहीं। 

क्‍लेम के लिए नहीं होती हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत

इंश्‍योरेंस लेने वाले को क्रिटिकल इलनेस कवर का फायदा तभी मिलता है, जब उसे पॉलिसी के तहत आने वाली कोई गंभीर बीमारी हुई हो। क्रिटिकल इलनेस कवर के तहत क्‍लेम लेने के लिए किसी भी तरह के बिल या रसीद या हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती।


फ्लोटर पॉलिसी लेना ज्‍यादा फायदेमंद  

अगर अपने साथ अपने परिवार को भी इस कवर का फायदा दिलाना चाहते हैं तो फ्लोटर पॉलिसी लेना बेहतर रहेगा। यह पॉलिसी पूरे परिवार के लिए होती है। इसके तहत बीमित व्यक्ति, पत्‍‌नी और दो बच्चों की क्रिटिकल बीमारियों को कवर किया जाता है। 

देख लें वेटिंग पीरियड वाली तो नहीं है पॉलिसी

कुछ क्रिटिकल इलनेस कवर में एक निश्चित वेटिंग पीरियड होता है। इसका अर्थ है कि अगर कोई गंभीर बीमारी इस वेटिंग पीरियड में सामने आती है तो वह बीमारी आपके कवर के तहत नहीं आएगी। ऐसी पॉलिसीज में वेटिंग पीरियड खत्‍म होने के बाद सामने आने वाली गंभीर बीमारियों का इलाज ही कवर होता है। 

भारत में सबसे बेस्ट हेल्थ इंश्योरेंश प्लान


आज भारत में सबसे अच्छी फैमिली फ्लोटर स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए बहुत सारे विकल्प हैं। जरूरत है तो बस हर संभव वेबसाइट पर जाकर अपने लिए अनुकूल योजना पता करने की । एक व्यक्ति के लिए जो योजना अच्छी है जरूरी नहीं की दूसरे के लिए भी अच्छी हो। भारत में उपलब्ध सबसे अच्छी फैमिली फ्लोटर स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में से कुछ के उदाहरण नीचे दिए गए हैं। हम बढ़ते हुए क्रम में सबसे सस्ते से लेकर सबसे महंगी योजनाओं की सूची लाएं हैं जिसमे इन योजनाओं से मिलने वाले लाभों का विवरण भी है। हम एक स्वास्थ्य बीमा योजना में निवेश की जरूरत पर जोर देना चाहते हैं क्योंकि इससे आप आयकर अधिनियम के तहत कर लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं।

ओरिएंटल इंश्योरेंस

ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी एक हैप्पी फैमिली फ्लोटर नामक योजना प्रदान करती है।ओरिएंटल इंश्योरेंस हैप्पी फैमिली फ्लोटर प्लान के प्रीमियम की लागत 9297 रुपये है। इस हैप्पी फैमिली फ्लोटर प्लान के तहत बीमा कंपनी द्वारा कुल इलाज-खर्च का 90 प्रतिशत और मरीज द्वारा 10 प्रतिशत खर्च दिए जाने का प्रावधान है । पूर्व से मौजूद बीमारी के लिए यह योजना 4 साल के बाद कवर करना शुरू करती है। योजना के तहत कमरे का किराया 5000 रुपए तक सीमित है। कोई नि: शुल्क स्वास्थ्य जांच इस योजना के तहत नहीं आती है। इस योजना के अन्तर्गत एलोपैथिक उपचार, गैर एलोपैथिक उपचार जैसे किआयुर्वेदिक/ होम्योपैथिक/यूनानी इलाज आदि सभी को कवर किया गया है। इस योजना में अगर पॉलिसी का दावा किए जाने पर ही पॉलिसी धारक को दावा बोनस मिलता है ।

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स्टार हेल्थ

स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी की बीमा योजना का नाम है फैमिलीऑप्टिमा। इस योजना में कवर किये गए और कवर नहीं किये गए सभी लाभों का विवरण यहाँ दिया गया है। स्टार हेल्थ फैमिली ऑप्टिमा के प्रीमियम की लागत 11,055 रुपये है। पहले से मौजूद बीमारी के लिए फैमिली ऑप्टिमा योजना चार साल के बाद से कवरेज शुरू करती है । कमरे का किराया उस शहर पर निर्भर करता है जहां उपचार लिया जा रहा है और यह सीमा 2,000 रुपये से 15,000 रुपये के तक है। नि: शुल्क स्वास्थ्य जांच-परामर्श शुल्क और स्वास्थ्य जांच को इस योजना में शामिल किया जाता है। यह योजना आजीवन नवीकरण का विकल्प भी प्रदान करती है।

भारती एक्सा

भारती एक्सा जनरल इंश्योरेंस, स्मार्ट हेल्थ नमक योजना प्रदान करता है। भारती एक्सा स्मार्ट हेल्थ योजना की प्रीमियम लागत 12,064 रुपये है। इस स्मार्ट हेल्थ योजना में 100 फीसदी कवरेज प्रदान किया जाता है।अन्य योजनाओं की तरह इसमें भी पूर्व से मौजूद बीमारी का कवरेज 4 साल के बाद शुरू होता है। कमरे का किराया पूरी तरह से इस पॉलिसी में कवर किया गया है। यह योजना भी आजीवन नवीकरण का विकल्प प्रदान करती है।

मैक्स बूपा

मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी की एक स्वास्थ्य योजना का नाम कम्पैनियन फैमिली फ्लोटर योजना है। इस योजना में कई लाभ प्रदान किये गए हैं। मैक्स बूपा हेल्थ कंपेनियन फैमिली फ्लोटर प्लान के तहत प्रीमियम की राशि 13,718 रुपये है। योजना के तहत आने वाले विभिन्न लाभों में से कुछ हैं 

असीमित कमर-किराया, जीवन भर का नवीकरण, नो-क्लेम बोनस और नि: शुल्क स्वास्थ्य जांच। हालांकि, इस योजना के तहत पूर्व मौजूदा रोग कवर नहीं किये गए हैं। हालांकि, नि: शुल्क स्वास्थ्य जांच - परामर्श और स्वास्थ्य जांच को इस योजना में शामिल किया गया है। इसमें यदि नीति का दावा नहीं किया जाता तो पॉलिसी धारक को कोई दावा बोनस नहीं मिलता है । यह योजना आजीवन नवीकरण का विकल्प भी प्रदान करती है।

आईसीआईसीआई लोम्बार्ड

आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस की एक योजना iHealth योजना है। इस योजना की प्रीमियम लागत 14,668 रुपये है। वहाँ योजना के तहत किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है और कवरेज 100 प्रतिशत है। अन्य सभी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों की तरह ही पूर्व से मौजूद बीमारी का कवरेज इस योजना के तहत भी 4 साल के बाद शुरू होता है। 

कमरे का किराया पूरी तरह से इस पॉलिसी में कवर किया गया है। आप इस योजना के तहत एक नि: शुल्क स्वास्थ्य जांच और निशुल्क परामर्श का लाभ भी उठा सकते हैं। इस योजना की तहत गैर एलोपैथिक उपचार जैसे आयुर्वेदिक / होम्योपैथिक और यूनानी इलाज शामिल नहीं हैं। इस योजना में अगर पॉलिसी का दावा नहीं किया जाता है तो पॉलिसी धारक को कोई दावा बोनस नहीं मिलेगा। यह योजना भी आजीवन नवीकरण का विकल्प प्रदान किया गया है।

अपोलो म्युनिक

यह एक और लोकप्रिय स्वास्थ्य बीमा कंपनी है। अपोलो म्युनिक हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की योजना का नाम ऑप्टिमा रिस्टोर है। ऑप्टिमा रिस्टोर के तहत प्रीमियम का शुल्क 15,274 रुपये है। इस योजना में आपको १०० प्रतिशत कवरेज मिलता है। गौरतलब है कि पूर्व से मौजूद बीमारी का कवरेज मात्र ३ साल के बाद शुरू हो जायेगा, जबकि अन्य बीमा कंपनियों में यह 4 साल के बाद शुरू होता है। कमरे का किराया पूरी तरह से इस पॉलिसी के तहत कवर किया गया है। 
इस योजना के अन्तर्गत आप नो क्लेम बोनस तक नि: शुल्क स्वास्थ्य की जाँच का लाभ भी उठा सकते हैं। इस योजना में अगर पॉलिसी का दावा नहीं किया है पॉलिसी धारक को कोई दावा बोनस नहीं मिलता है ।

टाटा एआईजी

मेडी प्राइम, टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की एक योजना है। मेड़ी प्राइम योजना के प्रीमियम की लागत 15,488 रुपये है। अधिकांश अन्य बीमा कंपनियों की तरह इसके तहत भी कुल राशि का 100 प्रतिशत कवर किया जाता है। पूर्व से मौजूद बीमारी के लिए यह योजना 4 साल के बाद कवर करना शुरू कर देती है। इस योजना का एक और प्रमुख लाभ यह है की इसमें कमरे का किराया पूरी तरह से कवर किया गया है। इसमें भी नि: शुल्क स्वास्थ्य की जांच और परामर्श शामिल है। गौरतलब है की इसमें गैर एलोपैथिक उपचार जैसे आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक / यूनानी इलाज आदि को भी कवर किया गया है।

सिग्ना टीटीके

सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा प्रदान की जने वाली एक योजना प्रो हेल्थ प्लस है। प्रो हेल्थ प्लस योजना की प्रीमियम लागत 16,063 रुपये है। पूर्व से मौजूद बीमारी के लिए यह योजना 4 साल के बाद से कवर करना शुरू करती है। कमरे का किराया पूरी तरह से इस पॉलिसी में कवर किया जाता है। इस योजना में भी परामर्श शुल्क और स्वास्थ्य जांच की नि: शुल्क सुविधा प्रदान की जाती है। याद रखें, कि आपको स्वास्थ्य बीमा के लिए भुगतान किये गए प्रीमियम के लिए, आयकर अधिनियम के तहत कर लाभ मिलता है । इसके अलावा भी कई अन्य स्वास्थ्य बीमा कंपनियां है जिनके बारे में हम जानकारी नहीं दे सकते। आप सभी विकल्पों को ध्यान में रखकर अपने लिए बेहतरीन योजना का चुनाव करें ।


मानसिक रोगियों को भी मिलेगा स्वास्थ्य बीमा का लाभ, हेल्थ पॉलिसी लेते समय रखें सावधानी

अब मानसिक रोगी भी स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठा पाएंगे। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 लागू होने के तीन महीने बाद भारतीय बीमा नियामक ने इसके लिए कंपनियों को आदेश जारी कर दिया है।

हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते इन बातों का रखें ध्यान:

हेल्थ इंश्योरेंस खरीदना ही सब कुछ नहीं होता। किसी भी इंश्योरेंस पॉलिसी की खरीद से पहले जरूरी है कि उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल की जाए। सही पॉलिसी का चुनाव ही जरूरत के समय लाभदायक साबित होता है। किसी भी पॉलिसी को उसकी कीमत के आधार पर खरीदना सबसे बड़ी गलती होती है।

ऐसा जरूरी नहीं है कि सस्ती पॉलिसी ही सबसे अच्छी हो। कीमत के अलावा अन्य बेनिफिट्स भी ध्यान में रखने चाहिए। 

इनमें सबसे पहले यह जांचें कि कंपनी की ओर से पॉलिसी प्रीमियम पर क्या क्या फायदे दिये जा रहे हैं। 

इस पर फाइनेंशियल प्लानर जितेंद्र सोलंकी का मानना है कि एक अच्छी हेल्थ पॉलिसी खरीदने से पहले सबसे पहले इसकी कवरेज जान लें। साथ ही यह सुनिश्चित कर लें कि इसके दायरे में कौन-कौन सी बीमारियां और बेनिफिट्स नहीं आते हैं। 

इसके पैनल में जो भी अस्पताल हैं उनकी टॉप लिमिट क्या है, उसमें डॉक्टर के विजिट के चार्जेस, आईसीयू में भर्ती होने के घंटों पर कोई लिमिट तो नहीं है। यह भी जांच कर लें कि किन-किन स्थितियों में पॉलिसीधारक क्लेम का हकदार नहीं होता है।ऐसे ही ओर अछे articles के लिए जुड़े रहे ( https://normaladvices.blogspot.com ) से।


2332 रुपए में मिल जाएगा 20 लाख का कैंसर कवर, चेक करें 4 बीमा कंपनियों के बेस्‍ट प्‍लान


मौजूदा समय में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
आप 20 लाख रुपए का कैंसर कवर सालाना 2332 रुपए प्रीमियम में ले सकते हैं। यह प्रीमियम 35 साल के एज ग्रुप के लिए है। उम्र बढ़ने के साथ प्रीमियम बढ़ता जाता है। बीमा कंपनियां स्‍टैंडएलोन कैंसर प्रोटेक्‍शन प्‍लान की पेशकश कर रही हैं। यह प्‍लान किसी भी व्‍यक्ति को कैंसर के खिलाफ वित्‍तीय सुरक्षा मुहैया कराता है। कैंसर प्रोटेक्‍शन प्‍लान बीमारी डायग्‍नोस होने पर एक निश्चित रकम मुहैया कराती हैं। आज हम चार कंपनियों के कैंसर प्रोटेक्‍शन प्‍लान के बारे में बता रहे हैं। इससे आप यह जानकारी पा सकते हैं कि आप अपने लिए किस तरह का कैंसर प्रोटेक्‍शन प्‍लान ले सकते हैं और इसके लिए आपको कितना सालाना प्रीमियम देना होगा। हमने प्रीमियम का कैलकुलेशन 36 साल की उम के व्‍यक्ति के लिए किया है। 

मैक्‍स लाइफ इन्‍श्‍योरेंस का कैंसर प्‍लान 

  

कवर-50 लाख रुपए तक कैंसर कवर 

60- साल तक की उम्र के लिए 


प्रीमियम- 14 हजार रुपए 

बेनेफिट- कैंसर डायग्‍नोस होने पर मिल जाएगी एकमुश्‍त रकम। यह रकम कितनी होगी इस बात पर निर्भर करेगा कि कैंसर किस स्‍टेज में डायग्‍नोस हुआ है। 

आईसीआईसीआई प्रूडेंसियल लाइफ इन्‍श्‍योरेंस कैंसर एंड हार्ट प्रोटैक्‍शन

प्‍लान 
कवर-20 लाख 

60 साल की उम्र के लिए 

प्रीमियम- लगभग 12000 रुपए सालाना 

बेनेफिट- कैंसर या हार्ट डिजीज डिटेक्‍ट होने पर मिलती है एकमुश्‍त रकम 

एचडीएफसी लाइफ कैंसर केयर 

कवर- 20 लाख 

पॉलिसी टर्म- 20 साल 

सालाना प्रीमियम-2332 रुपए 

बेनेफिट- कैंसर डायग्‍नोस होने पर मिल जाएगा एकमुश्‍त पैसा 

एगॉन लाइफ कैंसर इन्‍श्‍योरेंस प्‍लान 

कवर- 25 लाख 
पॉलिसी टर्म- 29 साल 
सालाना प्रीमियम- 8,128 रुपए 
बेनेफिट- माइनर स्‍टेज पर कैंसर डिटेक्‍ट होने पर सम एश्‍योर्ड का 25 फीसदी मिलेगा। 
-मेजर स्‍टेज पर कैंसर डिटेक्‍ट होने पर 100 फीसदी सम एश्‍योर्ड मिलेगा। 


Normal advices
दोस्तो मेरी तो ये ही सलाह है कि आप अचे से जान के ही अपना इन्सुरेंस ले और हर तरह से उसके बारे जान ले




तो दोस्तो आज जाना कि कैसे हम ( Apni life k lia apni Health k lia sahi insurance chun sakte hai ) ओर अपनी लाइफ को खुश रख सकते है दोस्तो आप इन सब advices को आपनी लाइफ मैं जरूर Try करे और ऐसे ही ओर अछे articles के लिए जुड़े रहे ( https://normaladvices.blogspot.com ) से।

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