Asthma ka ilaj asni se



Asthma ka ilaj bhot asni se...




दोस्तो आज हम बात करे गे अस्थमा जिसे दाम बी बोल ते है और अस्थमा आज कल आम बीमारी होती जा रही जो आज कल बचो तक को हो रही है । अस्थमा, सास लेने वाले मार्ग से संबंधित एक बिमारी है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। .श्वसन मार्ग में सूजन आने की वजह से यह समस्या होती है जिससे कि ये मार्ग तंग हो जाते है। इसमें सांस लेते समय घरघराने की आवाज आना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में भारीपन एवं खांसी आदि सम्मिलित है दोस्तो थोड़े आसान तरह से बात हु । अस्थमा जिसे आम बोल चाल के भाषा में “दमा” के नाम से भी जानते हैं । अस्थमा (Asthma) स्वसन और फेफड़ो से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है।

स्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। अस्थमा होने के कारण इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन और संकुचन पैदा हो जाता है जिससे फेफड़ो में वायु का प्रवाह सही ढंग से नहीं हो पाता हैं । जिसकी वजह से रोगी व्यक्ति को साँस लेने में खासा परेशानी का सामना करना पड़ता हैं । जिससे रोगी व्यक्ति के शरीर को आवश्यक ऑक्सीजन नहीं मिल पाता हैं । जिसकी वजह से कई विषम परिस्थितयो में रोगी की मौत तक हो जाती हैं । तो दोस्तो चलो जानते है कि इस बीमारी से कैसे बचें,परहेज़, डाइट,योग और बी बहोत कुछ तो चलो जानते है अस्तम से कैसे पाएं छुटकारा।

Kuch points mai aap ko ye article batuga jis se ye article aap ko ache se smaj aa jay ga..

1, अस्थमा (दमा) के बारे जानकारी

2, अस्थमा (दमा) के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव

3,अस्थमा को रोकने के लिए आपको कुछ चीजों से परहेज करना चाहिये

4,अस्‍थमा के लक्षणों को जानकर कम करें इसके दुष्‍प्रभाव

5, कितने तरह के होते हैं दमा

6, अस्‍थमा को कंट्रोल करने का घरेलू उपचार

7, यों थाम लें अस्थमा ( important topic)

8, अस्थमा का इलाज

9, गर्मी के दिनों में खयाल रखना जरूरी

10, ठंड से बढ़ जाता है अस्थमा, ऐसे बचें

11, बच्चे के अस्थमा को इस प्रकार करें कंट्रोल

12, काफी से अस्थमा का ईलाज

13,अस्थमा को जड़ से खत्म करते है ये 8आयुर्वेदिक नुस्खे

14, अस्थमा के अचूक घरेलू इलाज

15, दमे को नियंत्रित करने के घरेलू नुस्ख

16, अस्थमा का जड़ से इलाज बाबा रामदेव के उपाय और नुस्खे

17, दमा के मरीज़ ना लें ये आहार

18, अस्थमा में क्या खाएं और किन चीजों से रखें परहेज.

19, अस्थमा के रोगियों के लिए डायट .

20, अस्थमा में जरूर कराएं ये जांच

21, दमा के रोगी हैं तो जरुर करें ये योगा

तो चलो दोस्तो जानते है इन टॉपिक्स के बारे मे।

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अस्थमा (दमा) के बारे जानकारी hindi mai.


दोस्तो ऊपर जाना था कि अस्थमा जिसे आम बोल चाल के भाषा में “दमा” के नाम से भी जानते हैं । अस्थमा (Asthma) स्वसन और फेफड़ो से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है।

स्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। 
अस्थमा होने के कारण इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन और संकुचन पैदा हो जाता है जिससे फेफड़ो में वायु का प्रवाह सही ढंग से नहीं हो पाता हैं । जिसकी वजह से रोगी व्यक्ति को साँस लेने में खासा परेशानी का सामना करना पड़ता हैं । जिससे रोगी व्यक्ति के शरीर को आवश्यक ऑक्सीजन नहीं मिल पाता हैं । जिसकी वजह से कई विषम परिस्थितयो में रोगी की मौत तक हो जाती हैं ।

वैसे तो इस बिमारी का अभी तक medical science में कोई प्रमाणित इलाज संभव नहीं हो पाया है । लेकिन कुछ ऐहतियात बरत के हम इसपर कंट्रोल पा सकते हैं ।

आइए अस्थमा (Asthma) से जुड़े कुछ अहम बिन्दुओ पर प्रकाश डालें

☛ अस्थमा होने के कारण

☛ अस्थमा होने के लक्षण

☛ अस्थमा से जुड़े परीक्षण और जाँच

☛ अस्थमा का घरेलू उपचार

☛ अस्थमा में बरते जाने वाली जरुरी सावधानियां
दमा होने के कारण

वंशानुगत कारक :- अस्थमा (दमा) एक वंशानुगत बिमारी है ।
 वंशानुगत बीमारियां – ऐशी हार्मोनल बीमारियां होती हैं जो की हमे बड़े – बुढो से स्वतः मिल जाती हैं । यानि की अगर हमारे परिवार में कोई बड़े-बुजर्ग किसी रोग से प्रभावित होते हैं तो एक ही हार्मोन होने की वजह से उनके बच्चो को उस रोग के होने की संभवाना काफी बढ़ जाती हैं ।


 एलर्जी :- एलर्जी एक ऐसी समस्या है जो किसी को कभी भी हो सकती है. एलर्जी आमतौर पर नाक, गले, कान, फेफड़ों और त्वचा को प्रभावित करती है ।

कई बार नाक,फेफड़ों और त्वचा संबंधी एलर्जी के कारण भी अस्थमा (दमा) की समस्या उत्पन्न हो सकती हैं ।

 वायु प्रदुषण :- प्रदुषण दिन व दिन गंभीर समस्या बनता जा रहा है । वायु प्रदूषण जैसे धूल, घुन, पराग के कुप्रभाव से ज्यादातर साँस और फेफड़ो संबंधी समस्या में बढ़ोतरी देखनो को मिल रही है । जिसमे ज्यादातर लोग अस्थमा (दमा) से प्रभावित हैं

खराब जीवनशैली :- आज के आधुनिक युग में हमारी जीवनशैली जितनी व्यस्त हो रही है उतना ही ज्यादा खराब भी हो रही हैं । शारीरिक क्षमता में कमी , खराब खानपान , स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही भी अस्थमा (दमा) का एक महत्वपूर्ण कारण हैं ।

खाने में शल्फर की अधिकता :- ज्यादा salt और junk foods खाने से अस्थमा (Asthma) होने का खतरा बढ़ता है 

 धूम्रपान :- धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है। यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को अस्थमा होने का खतरा होता है।


अस्थमा (दमा) के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव..



अस्थमा फेफड़े की बीमारी है, जिसमें वायुमार्ग (airways) सिकुड़ जाता है, उसमें सूजन हो जाती है और गले से अधिक कफ या बलगम (mucus) निकलने लगता है। इसकी वजह से सांस लेने में कठिनाई, खांसी और गले में घरघराहट (wheezing) होती है। आजकल यह बीमारी बहुत आम हो गई है और ज्यादातर लोगों में इस अस्थमा की शिकायत पायी जाती है। इस आर्टिकल में आप जानेगे अस्थमा के कारण अस्थमा के लक्षण, जाँच और बचाव के उपाय के बारें में।
कुछ लोगों के लिए अस्थमा एक छोटी सी परेशानी है जबकि अन्य लोगों के लिए यह एक गंभीर बीमारी है जो व्यक्ति के दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करती है और उन्हें अस्थमा का जानलेवा दौरा पड़ सकता है। अस्थमा का इलाज नहीं किया जा सकता लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। समय के साथ इस बीमारी की स्थिति में भी बदलाव होता रहता है इसलिए अस्थमा के मरीज को लगातार डॉक्टर के संपर्क में बने रहना चाहिए ताकि समय के साथ परिवर्तित होने वाले अस्थमा के लक्षणों को पहचाना जा सके।

अस्थमा(दमा) के कारण

अस्थमा के सटीक कारणों का पता अभी तक नहीं चल पाया है। लेकिन इस बीमारी के पीछे आनुवांशिक एवं पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार होते हैं। बचपन में वायरल इंफेक्शन या एलर्जी जैसे पर्यावरणीय कारकों से यह बीमारी विकसित हो सकती है। अस्थमा की बीमारी आमतौर पर अधिक धूम्रपान, तंबाकू का सेवन, धूल के कण, वायु प्रदूषण,पराग (pollen), श्वास नली में संक्रमण, ठंडी हवा, शारीरिक गतिविधियां, एलर्जिक रिएक्शन और कुछ भोज्य पदार्थों के कारण होता है। इसके अलावा अधिक तनाव और भावनात्मक रूप से कमजोर होने के कारण भी यह बीमारी हो जाती है। पेय पदार्थों जैसे बीयर, वाइन (wine), खाद्य पदार्थों जैसे सूखे मेवे (dried fruit) भी इस बीमारी का कारण हो सकते हैं।

अस्थमा के जोखिम

अस्थमा की बीमारी विकसित होने के पीछे कई कारक जिम्मेदार होते हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं-

यदि माता-पिता (parents) को अस्थमा (दमा) की बीमारी हो तो उनके बच्चे भी इस बीमारी के चपेट में आ सकते हैं।वजन अधिक (obesity) होने, पुराने सिगरेट या बीड़ी का उपयोग करने, प्रदूषित स्थानों पर रहने और खेती में रसायनों का इस्तेमाल करने से यह बीमारी होने का जोखिम बना रहता है।

अस्थमा (दमा) के लक्षण

अस्थमा के लक्षण प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं। कुछ लोगों को अस्थमा का दौरा कभी-कभी पड़ता है तो कुछ लोगों में अस्थमा के लक्षण सिर्फ एक्सरसाइज करते वक्त दिखाई देते हैं, जबकि कुछ लोगों में इस बीमारी के लक्षण हमेशा मौजूद रहते हैं।

अस्थमा के लक्षण निम्न हैं-

सांस लेने में तकलीफछाती में जकड़न (chest tightness) या दर्दश्वसन में कठिनाई के कारण नींद आने में परेशानी, गला घरघराना, गले में कफ और बलगम होना। (और पढ़े – गले की खराश को ठीक करने के घरेलू उपाय)श्वास छोड़ते समय गले से सीटी की आवाज निकलना या घरघराहट होना बच्चों में अस्थमा के आम लक्षण हैं।सर्दी-जुकाम या बुखार के कारण श्वास नली में संक्रमण होने के कारण गले में कफ और बलगम अधिक बढ़ जाना।इसके अलावा कुछ व्यक्तियों में एक्सरसाइज के दौरान अस्थमा (दमा)के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं और ठंडी या शुष्क हवा में यह लक्षण अधिक गंभीर हो जाते हैं।फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों में धूल, गैस, धुआं और रसायनों के कारण अस्थमा के लक्षण अधिक बढ़ जाते हैं।

अस्थमा (दमा) का निदान

मरीज में अस्थमा की बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज के शरीर का परीक्षण (physical test) करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर मरीज के परिवार में किसी सदस्य के इस बीमारी से पीड़ित होने के विषय में भी पूछते हैं। डॉक्टर स्टेथोस्कोप (stethoscope) का प्रयोग कर मरीज के फेफड़े की आवाज को सुनते हैं और गले की घरघराहट, नासिका में सूजन, नाक से पानी गिरने, और बलगम की जांच की जांच कर इस बीमारी का पता लगाते हैं।

इस बीमारी का पता लगाने के लिए लंग फंक्शन टेस्ट किया जाता है जिसे स्पाइरोमेट्री (spirometry) कहते हैं। इस टेस्ट के जरिए यह पता लगाया जाता है कि कितनी तेजी से व्यक्ति सांस ले रहा है और छोड़ रहा है। इसके अलावा डॉक्टर उस मरीज को एलर्जी टेस्ट कराने की भी सलाह देते हैं।

अस्थमा (दमा) का इलाज

अस्थमा का कोई इलाज नहीं है। अस्थमा के लक्षण दिखाई देने पर व्यक्ति को डॉक्टर को दिखाना चाहिए और इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। आमतौर पर डॉक्टर अस्थमा से मरीज को बचाने या अस्थमा के लक्षणों को कम करने के लिए कुछ दवाएं देते हैं। इसके अलावा मरीज को अस्थमा थेरेपी भी दी जाती है जिससे कि अस्थमा के लक्षणों को खत्म किया जा सके।

अस्थमा के उपचार में वायुमार्ग में सूजन को कम करने का प्रयत्न किया जाता है और किसी भी तरह की एलर्जी से बचने की सलाह दी जाती है। इलाज का मुख्य उद्देश्य मरीज के श्वसन को सामान्य (normal breathing) बनाकर अस्थमा के दौरे को कम करना और दैनिक गतिविधियों को आसान बनाना होता है। अस्थमा के लक्षणों को दूर करने के लिए अस्थमा इनहेलर्स (asthma inhalers) एक अच्छी विधि मानी जाती है क्योंकि इस विधि में दवाओं को सीधे फेफड़ों में पहुंचाया जाता है जिसका हल्का नुकसान (side effect) होता है। अस्थमा की कुछ दवाएं गोली या इंजेक्श के रूप में भी दी जाती हैं।

अस्थमा (दमा) से बचाव

हालांकि अस्थमा को रोकने का कोई तरीका नहीं है लेकिन अस्थमा से बचने के लिए अपनी तरफ से कुछ सावधानियां बरती जा सकती हैं।प्रत्येक व्यक्ति को निमोनिया और इंफ्लूएंजा के टीके लगवाना चाहिए ताकि अस्थमा का कारण बनने वाले बुखार और निमोनिया से बचा जा सके।वायु प्रदूषण, पराग, एलर्जिक रिएक्शन, ठंडी हवा के कारण अस्थमा का दौरा पड़ सकता है, इसलिए इन स्थितियों से अपने शरीर को बचाकर रखना चाहिए।लगातार स्वास्थ्य परीक्षण करवाते रहना चाहिए और डॉक्टर से अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेते रहना चाहिए।गले में कफ, बलगम, घरघराहट, सांस लेने में तकलीफ आदि विकार फेफड़े की क्रिया को प्रभावित करते हैं और अस्थमा को सीधे दावत देते हैं, इसलिए यदि इस तरह की दिक्कतें महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।अस्थमा के लक्षणों (asthma symptoms) के बारे में पूरी जानकारी रखें, और जैसे ही ये लक्षण दिखें डॉक्टर के पास जाएं। क्योंकि शुरूआत में कुछ दवाओं के जरिए इन लक्षणों को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।


अस्थमा को रोकने के लिए आपको कुछ चीजों से परहेज करना चाहिये



दुर्भाग्य से अस्थमा वह अवस्था है जिसका कोई ईलाज नहीं है। इस स्थिति में एक ही विकल्प बचता है और वह है, इस अवस्था के साथ पूरी जिन्दगी बिताना। इस समय भारतीय जनसंख्या का 25% हिस्सा एलर्जी से ग्रसित है और इस हिस्से का 5% भाग उन एलर्जी से पीडि़त है जो अस्थमा जैसी गंभीर बिमारी को बढ़ावा देती है।

इस तरह के घातक कारणों को जान कर तथा उनसे परहेज करने से आप स्थिति को संतुलित कर सकते है। आपको ‘अस्थमा का ईलाज एवं अस्थमा के अटैक कि स्थिति में अपनी केयर करने के प्रति सचेत रहना चाहिये!

1. धूल
धूल, जो अपनी एलर्जी उत्पन्न करने के गुण कि वजह से अस्थमा रोगियों के लिए भयंकर परिणाम लाने वाली है। इसलिए यह निश्चित रूप से जरूरी है कि साफ-सफाई का ध्यान रखे एवं कमरे को धुल आदि से साफ रखें।

2. व्यायाम 
जेनेटिक अस्थमा, जोरदार एवं बहुत लम्बें समय तक किए जाने वाले व्यायाम की वजह से हाने वाले अस्थमा का एक प्रकार है। व्यायाम शुरू करने के 5 से 20 मिनट के बाद श्वसन मार्गों का सिकुड़ना आरम्भ हो जाता है जो आपके सांस लेने को मुश्किल बनाने लगता है। सामान्यतौर पर, जो वायु हम ग्रहण करते है वह नाक से गुजरने के दौरान गर्म एवं नम हो जाती है। परन्तु व्यायाम के दौरान लोग मुंह से सांस लेने के आदि होते है इस तरह वे ठण्डी एवं शुष्क वायु लेते है।

3. सख्त मौसम
गर्म एवं नम मौसम या अत्यधिक ठण्डा मौसम, अस्थमा के लक्षणों को बढ़ाता है। अस्थमा से पीडि़त रोगियों को ये निश्चित कर लेना चाहिए कि उन्हें अपने आपको कुछ पल के लिए भी इस तरह के मौसम के सामने नहीं लाना चाहिये।

4. अत्यधिक भावनात्मक संवेदना
अत्यधिक संवेदना जैसे चिंता, गुस्सा एवं डर आदि तनाव को बढ़ाते है जो हृदय गति एवं श्वसन प्रक्रिया में परिवर्तन लाता है। तेज एवं हल्की सांस वायु प्रवाह के मार्गों को संकीर्ण बना देता है जिसके परिणाम स्वरूप अस्थमा के अटैक को बढ़ावा मिलता है।

5. फूड एलर्जी 
अस्थमा कि समस्या से जुड़े कुछ मुख्य खाद्य पदार्थों में अण्डा, गाय का दुध, मुंगफली, सोया, मछली, झींगा आदि कुछ है। सोडियम बाईसल्फाइट, पौटेशियम बाईसल्फाइट, सोडियम मेटाबाईसल्फाइट, पोटैशियम मेटाबाईसल्फाइट एवं सोडियम सल्फाइट आदि कुछ खाद्य परिरक्षक भी अस्थमा कि समस्या के कारण है।

अस्‍थमा के लक्षणों को जानकर कम करें इसके दुष्‍प्रभाव

अस्‍थमा में व्‍यक्ति को सांस लेने में होती है परेशानी।आमतौर पर रात को पड़ते हैं अस्‍थमा के अटैक।सर्दी के दिनों में समस्‍या अधिक होती है।लगातार छींक आती है अस्‍थमा अटैक्‍ के दौरान।

कुछ लोगों में पुरानी खांसी ही दमा का मुख्य कारण है। कुछ लोगों में व्यायाम के बाद लक्षण बढ़ जाते है कई बार दमा के दौरे के समय हलके या गम्भीर लक्षणों का पता नहीं लगता । दमा के साथ गम्भीर लक्षण आते हैं जब एक उपरी श्वसन संक्रमन हो जाने से जैसे फ्लू या सर्दी ।

दमा का कोई स्थाई इलाज नहीं होता। हालांकि इस पर नियंत्रण जरूर किया जा सकता है। इस रोग को नियंत्रित कर मरीज सामान्‍य जीवन व्‍यतीत कर सकता है। जब तक आप जरूरी सावधानियां बरतते हैं, तब तक इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

अस्‍थमा के लक्षण

अस्‍थमा के लक्षण व्‍यक्ति के अनुसार बदलते रहते हैं। यूं तो इस बीमारी के कई लक्षण ऐसे होते हैं, जो श्‍वास संबंधी अन्‍य बीमारियों के भी लक्षण होते हैं। इन लक्षणों को अस्‍थमा के अटैक के रूप में पहचाना जाना जरूरी होता है। दमा पीडि़त व्‍यक्ति को सांस लेने अैर छोड़ने में बहुत अधिक जोर लगाना पड़ता है। जब रोगी के शरीर के फेफड़ों की नलियों (जो वायु का बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों) में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है, तो फेफड़ा वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर पचा नहीं पाता है।

इससे पीडि़त पूरा सांस अंदर खींचे बिना ही बाहर छोड़ने पर विवश हो जाता है। इसी समस्‍या को दमा, अस्‍थमा या श्‍वास रोग कहा जाता है। कई बार हालात बहुत खराब हो जाती है क्‍योंकि व्‍यक्ति को सांस भीतर लेने में तो परेशानी होती ही है साथ ही सांस बाहर छोड़ने में उसे अधिक समय लगता है। इसके साथ ही इस प्रकिया में सीटी की आवाज भी सुनाई देती है।

जब अस्‍थमा का दौरा पड़ता है तो व्‍यक्ति छटपटाने लगता है। ऑक्‍सीजन के अभाव के कारण उसका चेहरा नीला हो जाता है। अस्‍थमा किसी को भी हो सकता है। दौरे के दौरान रोगी को सूखी और ऐंठनदार खांसी होती है। रोगी बलगम निकालने की कितनी ही कोशिश करे, बलगम बाहर निकलती ही नहीं है। व्‍यक्ति को रात में खासकर सोते समय अधिक परेशानी होती है।



दमे के लक्षण

शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे हैं इसके सामान्‍य लक्षण।रोगी को सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार कफ निकलने की शिकायत होती है।यूं तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं, लेकिन रात को दो बजे के बाद अधिक होती है आशंका।लगातार छींक आती रहती है।लगातार खांसी होती है फिर चाहे व बलगम के साथ हो या उसके बगैर। सांस फूलना, जो व्यायाम या किसी गतिविधि के साथ तेज होती हैदमा रोगी को सांस लेनें में बहुत अधिक परेशानी होती है।दमा का दौरा आमतौर पर अचानक शुरू होता है।सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।ठंड के समय या फिर व्‍यायाम करने पर इसके असर तेज होता है। साथ ही गर्मी में भी अस्‍थमा का दौरा अधिक पड़ता है।रात या सुबह-सुबह बहुत तेज होता है।दवाओं के उपयोग से अस्‍थमा को नियंत्रित किया जा सकता है। दवायें श्‍वास नलिकाओं को खोलने का काम करती हैं।शरीर के अंदर खिंचाव (सांस लेने के साथ रीढ़ के पास त्वचा का खिंचाव)


कितने तरह के होते हैं दमा

दमा का सबसे ज्यादा प्रभाव या दबाव फेफड़ों पर पड़ता है।बच्चों और बड़ों में होने वाले दमा में काफी अंतर होता है।दमा के प्रकारों और उनके बचाव के बारे में जानना जरूरी है।दमा के इलाज के लिए इनहेलर है जिसका अपना दुष्‍प्रभाव भी है।
दमा फेफड़ों को खासा प्रभावित करता है। दमा के कारण व्यक्ति को श्वसन संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। दमा सिर्फ युवाओं और व्यस्कों को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। हालांकि अस्‍थमा के इलाज के लिए इनहेलर दिया जाता है लेकिन इनहेलर के दुष्‍प्रभाव भी होते हैं। इन सबके अलावा सवाल ये उठता है कि क्या दमा के प्रकार अलग-अलग होते हैं। बच्चों और बड़ों में होने वाला अस्थमा एक ही प्रकार का होता है। ये आपके लिए जानना बहुत जरूरी हैं। आइए जाने दमा के तमाम प्रकारों के बारे में।

* एलर्जिक अस्थमा – एलर्जिक अस्थमा के दौरान आपको किसी चीज से एलर्जी है जैसे धूल-मिट्टी के संपर्क में आते ही आपको दमा हो जाता है या फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही आप दमा के शिकार हो जाते हैं।

* नॉनएलर्जिक अस्थमा- इस तरह के अस्थमा का कारण किसी एक चीज का एक्सिक्ट्रीम पर जाने से ऐसा होता है। जब आप बहुत अधिक तनाव में हो  या बहुत तेज-तेज हंस रहे हो, आपको बहुत अधिक सर्दी लग गई हो या बहुत अधिक खांसी-जुकाम हो। 

* मिक्सड अस्थमा- इस प्रकार का अस्थमा किन्हीं भी कारणों से हो सकता है। कई बार ये अस्थमा एलर्जिक कारणों से तो है तो कई बार नॉन एलर्जिक कारणों से। इतना ही नहीं इस प्रकार के अस्थमा के होने के कारणों को पता लगाना भी थोड़ा मुश्किल होता है

* एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा- कई लोगों को एक्सरसाइज या फिर अधिक शारीरिक सक्रियता के कारण अस्थमा हो जाता है तो कई लोग जब अपनी क्षमता से अधिक काम करने लगते हैं तो वे अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।

* कफ वेरिएंट अस्थमा- कई बार अस्थमा का कारण कफ होता है। जब आपको लगातार कफ की शिकायत होती है या खांसी के दौरान अधिक कफ आता है तो आपको अस्थमा अटैक पड़ जाता है।

* ऑक्यूपेशनल अस्थमा- ये अस्थमा अटैक अचानक काम के दौरान पड़ता है। नियमित रूप से लगातार आप एक ही तरह का काम करते हैं तो अकसर आपको इस दौरान अस्थमा अटैक पड़ने लगते हैं या फिर आपको अपने कार्यस्थल का वातावरण सूट नहीं करता जिससे आप अस्थमा के शिकार हो जाते हैं।

* नॉक्टेर्नल यानी नाइटटाइम अस्थमा- ये अस्थमा का ऐसा प्रकार है जो रात के समय ही होता है यानी जब आपको अकसर रात के समय अस्थमा का अटैक पड़ने लगे तो आपको समझना चाहिए कि आप नॉक्टेर्नल अस्थमा के शिकार हैं।

* मिमिक अस्थमा- जब आपको कोई स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी कोई बीमारी जैसे निमोनिया, कार्डियक जैसी बीमारियां होती हैं तो आपको मिमिक अस्थमा हो सकता है। आमतौर पर मिमिक अस्थमा तबियत अधिक खराब होने पर होता है।

* चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा- ये अस्थमा का वो प्रकार है जो सिर्फ बच्चों को ही होता है। अस्‍थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है तो बच्चा इस प्रकार के अस्थमा से अपने आप ही बाहर आने लगता है। ये बहुत रिस्की नहीं होता लेकिन इसका सही समय पर उपचार जरूरी है

* एडल्ट ऑनसेट अस्थमा- ये अस्थमा युवाओं को होता है। यानी अकसर 20 वर्ष की उम्र के बाद ही ये अस्थमा होता है। इस प्रकार के अस्थमा के पीछे कई एलर्जिक कारण छुपे होते हैं। हालांकि इसका मुख्य कारण प्रदूषण, प्लास्टिक, अधिक धूल मिट्टी और जानवरों के साथ रहने पर होता है।

अस्‍थमा को कंट्रोल करने का घरेलू उपचार

दमा को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है, ताकि दमे से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सके। दमे का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है। यह चिकित्सकीय रूप से आपात स्थिति है। दमे के दौरे से मरीज की मौत भी हो सकती है। वैसे तो दमा का उपचार डॉक्‍टरी परामर्श से ही करवाना बेहतर होता है, लेकिन अस्‍थमा को कंट्रोल करने के लिये कुछ घरेलू उपचार भी हैं, जो कि बहुत लाभदायक हैं।

1. शहद एक सबसे आम घरेलू उपचार है, जो कि अस्‍थमा के इलाज के लिये प्रयोग होती है। अस्‍थमा अटैक आने पर शहद वाले पानी से भाप लेने से जल्‍द राहत मिलती है। इसके अलावा दिन में तीन बार एक ग्‍लास पानी के साथ शहद मिला कर पीने से बीमारी से राहत मिलती है। शहद बलगम को ठीक करता है, जो अस्‍थमा की परेशानी पैदा करता है।

2. एक कप घिसी हुई मूली में एच चम्‍मच शहद और नींबू का रस मिला कर 20 मिनट तक पकाएं। इस मिश्रण को हर रोज एक चम्‍मच खाएं। यह इलाज बड़ा ही प्रसिद्ध और असरदार है।

3. रातभर एक गरम पानी वाले ग्‍लास में सूखी अंजीर को भिगो कर रख दें। सुबह होते ही इसे खाली पेट खाएं। ऐसा करने से बलगम भी ठीक होता है और संक्रमण से भी राहत मिलती है।

4. करेला, जो कि अस्‍थमा का असरदार इलाज है, उसके एक चम्‍मच पेस्‍ट को लेकर शहद और तुलसी के पत्‍ते के रस के साथ मिला कर खाएं। इससे अंदर की एलर्जी से बहुत राहत मिलती है।

5. अंदर की एलर्जी को सही करने के लिये मेथी भी बहुत असरदार होती है। एक ग्‍लास पानी के साथ मेथी के कुछ दानों को तब तक उबालें, जब तक पानी एक तिहाई न हो जाए। अब उसी पानी में शहद और अदरक का रस मिला लें। इस रस को दिन में एक बार पीने से जरुर राहत मिलेगी।
यों थाम लें अस्थमा

अस्थमा (दमा) एक बार किसी को हो जाए तो जिंदगी भर रहता है। हां, वक्त पर इलाज और आगे जाकर ऐहतियात बरतने पर इसे काबू में किया जा सकता है। एक्सपर्ट्स से बात करके अस्थमा की वजह, इलाज और मैनेजमेंट पर जानकारी दे रहे हैं चंदन चौधरी 

क्या है अस्थमा 

अस्थमा (दमा) सांस से जुड़ी बीमारी है, जिसमें मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इस बीमारी में सांस की नली में सूजन या पतलापन आ जाता है। इससे फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव महसूस होता है। ऐसे में सांस लेने पर दम फूलने लगता है, खांसी होने लगती है और सीने में जकड़न के साथ-साथ घर्र-घर्र की आवाज आती है। अस्थमा किसी भी उम्र में हो सकता है । 

लक्षणों के आधार पर अस्थमा दो तरह का होता हैः बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा परागकणों, पशुओं, धूल, गंदगी, कॉकरोच आदि के कारण हो सकता है, जबकि आंतरिक अस्थमा कुछ केमिकल्स के शरीर के अंदर जाने से होता है। इसकी वजह प्रदूषण, सिगरेट का धुआं आदि होता है। आमतौर पर इस बीमारी का मुख्य असर मौसम के बदलाव के साथ दिखता है। 


लक्षण 

•सांस फूलना 
•लगातार खांसी आना 

•छाती घड़घड़ाना यानी छाती से आवाज आना 

•छाती में कफ जमा होना 

•सांस लेने में अचानक दिक्कत होना 
कब बढ़ता है अस्थमा 

•रात में या सुबह तड़के 

•ठंडी हवा या कोहरे से 

•ज्यादा कसरत करने के बाद 

•बारिश या ठंड के मौसम में 

बीमारी की वजहें 

जनेटिकः यह जनेटिक वजहों से भी हो सकती है। अगर माता-पिता में से किसी को भी अस्थमा है तो बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका होती है। अगर माता-पिता दोनों को अस्थमा है तो बच्चों में इसके होने की आशंका 50 से 70 फीसदी और एक में है तो करीब 30-40 फीसदी तक होती है। 
एयर पलूशन: अस्थमा अटैक के अहम कारणों में वायु प्रदूषण भी है। स्मोकिंग, धूल, कारखानों से निकलने वाला धुआं, धूप-अगरबत्ती और कॉस्मेटिक जैसी सुगंधित चीजों से दिक्कत बढ़ जाती है। 

खाने-पीने की चीजें: कोई खास चीज खाने-पीने से अगर शारीरिक समस्या होती है तो उसे नहीं खाना चाहिए। आमतौर पर अंडा, मछली, सोयाबीन, गेहूं से एलर्जी है तो अस्थमा का अटैक पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। 

स्मोकिंग: सिगरेट पीने से भी अस्थमा अटैक संभव है। एक सिगरेट भी मरीज को नुकसान पहुंचा सकती है। 
दवाएं: ब्लड प्रेशर में दी जाने वालीं बीटा ब्लॉकर्स, कुछ पेनकिलर्स और कुछ एंटी-बायोटिक दवाओं से अस्थमा अटैक हो सकता है। 

तनाव: चिंता, डर, खतरे जैसे भावनात्मक उतार-चढ़ावों से तनाव बढ़ता है। इससे सांस की नली में रुकावट पैदा होती है और अस्थामा का दौरा पड़ता है। 

फर्क है अस्थमा और एलर्जी में 

अस्थमा और एलर्जी में कई बार लोग कन्फ्यूज कर जाते हैं। हालांकि दोनों में कई चीजें कॉमन हैं, लेकिन फिर भी दोनों अलग-अलग हैं। लगातार कई दिनों तक जुकाम, खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो तो इन्फेक्शन इसकी वजह हो सकता है, जबकि अस्थमा में सांस लेने में परेशानी के अलावा रात में सोते वक्त खांसी आना, छाती में जकड़न महसूस होना, एक्सरसाइज करते हुए या सीढ़ियां चढ़ते वक्त सांस फूलना या खांसी आना, ज्यादा ठंड या गर्मी होने पर सांस लेने में दिक्कत होना जैसे लक्षण होते हैं। 

हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि अस्थमा भी एक तरह की एलर्जी ही है। जैसे ही शरीर एलर्जी वाली चीजों के संपर्क में आता है, अस्थमा का अटैक होता है। इसे एलर्जिक अस्थमा कहते हैं। हां, अस्थमा और एलर्जी में एक और कनेक्शन है। अगर किसी को एलर्जिक अस्थमा नहीं है, सिर्फ एलर्जी है तो अस्थमा होने का खतरा 40 फीसदी तक बढ़ जाता है। 

जरूरी टेस्ट 

अस्थमा या दमा रोग विशेषज्ञ (Allergist) या छाती रोग विशेषज्ञ (Pulmonologist) को ही दिखाएं। मरीज के कुछ टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें स्पायरोमेट्री (Spirometry), पीक फ्लो (Peak Flow), लंग्स फंक्शन टेस्ट और एलर्जी टेस्ट शामिल हैं। 

1. स्पायरोमेट्री: इसमें जांच की जाती है कि मरीज कितनी तेजी से सांस ले सकता है और छोड़ सकता है। 

कीमत: 500 से 2000 

2. पीक फ्लो: फेफड़े कितना काम कर रहे हैं, यह देखने के अलावा यह भी चेक करते हैं कि मरीज सांस कितनी तेजी से बाहर निकाल पा रहा है। 

कीमत: 500 तक 

3. लंग्स या पल्मनरी फंक्शन टेस्ट: इस टेस्ट के जरिए फेफड़े और पूरे श्वसन तंत्र की जांच की जाती है। 

कीमत: करीब 700 

अगर अस्थमा की वजह एलर्जी है तो उसके लिए 2 टेस्ट होते हैं: स्किन पैच टेस्ट और ब्लड टेस्ट 

1. स्किन पैच टेस्ट: जिस भी चीज से एलर्जी का शक होता है, उसका कंसंट्रेशन स्किन पर पैच के जरिए लगाया जाता है। इसके रिजल्ट सटीक होते हैं। 

कीमत: 10,000 तक 

2. ब्लड टेस्ट: ब्लड टेस्ट से भी एलर्जी की जांच होती है। हालांकि एक्सपर्ट इसे बहुत सटीक नहीं मानते। 

कीमत: 800 तक 

हो जाए तो बरतें ये एहतियात 

•दवाएं नियमित रूप से लें। 

•सूखी सफाई यानी झाड़ू से घर की साफ-सफाई से बचें। अगर ऐसा करते हैं तो ठीक से मुंह-नाक ढक कर करें।

वैसे, वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करना बेहतर है। गीला पोंछा और पानी से फर्श धोना भी अच्छा विकल्प हो सकता है। 

•बेडशीट, सोफा, गद्दे आदि की भी नियमित सफाई करें, खासकर तकिया की क्योंकि इसमें काफी सारे एलर्जीवाले तत्व मौजूद होते हैं। हफ्ते में एक बार चादर और तकिए के कवर बदल लें और दो महीने में पर्दे धो लें। 

•कारपेट इस्तेमाल न करें या फिर उसे कम-से-कम 6 महीने में ड्राइक्लीन करवाते रहें। 

•कॉकरोच, चूहे, फफूंद आदि को घर में जमा न होने दें। 

•मौसम के बदलाव के समय एहतियात बरतें। बहुत ठंडे से बहुत गर्म में अचानक नहीं जाएं और न ही बहुत ठंडा या गर्म खाना खाएं। 

•रुटीन ठीक रखें। वक्त पर सोएं, भरपूर नींद लें और तनाव न लें। 

खानपान का रखें ख्याल 

•जिस चीज को खाने से सांस की तकलीफ बढ़ जाती हो, वह न खाएं। डॉक्टर सिर्फ ठंडी चीजें खाने से मना करते हैं। आमतौर पर मरीज सोचता है कि मुझे फूड एलर्जी है, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। डॉक्टर जिस चीज से मना करें, वही न खाएं, बाकी सब खाएं। हां, जंक फूड से अस्थमा अटैक की आशंका ज्यादा होती है। 

•एक बार में ज्यादा खाना नहीं खाना चाहिए। इससे छाती पर दबाव पड़ता है। 

•विटामिन ए (पालक, पपीता, आम, अंडे, दूध, चीज़, बेरी आदि), सी (टमाटर, संतरा, नीबू, ब्रोकली, लाल-पीला शिमला मिर्च) और विटामिन ई (पालक, शकरकंद, बादाम, सूरजमुखी के बीज आदि ) और एंटी-ऑक्सिडेंट वाले फल और सब्जियां जैसे कि बादाम, अखरोट, राजमा, मूंगफली, शकरकंद आदि खाने से लाभ होता है। 

•अदरक, लहसुन, हल्दी और काली मिर्च जैसे मसालों से फायदा होता है। 

•रेशेदार चीजें जैसे कि ज्वार, बाजरा, ब्राउन राइस, दालें, राजमा, ब्रोकली, रसभरी, आडू आदि ज्यादा खाएं। 

•फल और हरी सब्जियां खूब खाएं। 

•रात का भोजन हल्का और सोने से दो घंटे पहले होना चाहिए। 

क्या न खाएं 

प्रोट्रीन से भरपूर चीजें बहुत ज्यादा न खाएं। 

•रिफाइन कार्बोहाइड्रेट (चावल, मैदा, चीनी आदि) और फैट वाली चीजें कम-से-कम खाएं। 

•अचार और मसालेदार खाने से भी परहेज करें।

•ठंडी और खट्टी चीजों से परहेज करें। 

ये जरूर खाएं

ओमेगा-3 फैटी एसिड 

ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, टूना मछलियों में और मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड फेफड़ों के लिए लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है। 

फोलिक एसिड 

पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तब्दील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है। 

विटमिन सी 

संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबरी, अंगूर और अनानास में भरपूर विटमिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं। 

लहसुन 

लहसुन में मौजूद एलिसिन तत्व फेफड़ों से फ्री रेडिकल्स को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है। 

बेरी 

बेरीज में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं। 

कैरोटीनॉयड ऐंटीऑक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है। फेफड़ों की कैरोटीनॉयड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना बेहतर रहता है। 

इस निशाचर से होती है परेशानी 

कॉकरोच के कारण अस्थमा और एलर्जी की समस्या बढ़ सकती है। एक स्टडी में पाया गया है कि एलर्जी के 60 फीसदी से अधिक मामलों का कारण कॉकरोच है। दरअसल कॉकरोच के मुंह से एक विशेष प्रकार का लार निकलता है, जो अस्थमा के लिए खतरनाक माना जाता है। 

कॉकरोच नमी वाली जगहों, सीवेज और उन जगहों पर रहते हैं, जहां गंदगी होती है। वे एलर्जी पैदा करने वाले तत्व अपने साथ लाते हैं। इससे उन पर बुरा असर पड़ता है जो अस्थमा से पीड़ित होते हैं क्योंकि यह ट्रिगर का काम करता है। 

कॉकरोच से बचने के लिए क्या करें 

•घर को साफ रखें। 
•रात को सोने से पहले रसोई और सिंक साफ करें। 
•डस्टबिन साफ रखें और ढंक कर रखें। 
•खाना खुला कभी नहीं छोड़ें। 
•फ्रिज को नियमित रूप से साफ करें। 
•नमी वाली जगहों को साफ रखें। 

•ऐसे सभी छेदों को बंद कर दें जहां से कॉकरोच घर में घुस सकता है। 
•बाजार में कई तरह की दवाइयां मिलती हैं जिससे कॉकरोच मारा जा सकता है। 
•कम से कम छह महीने पर घर में पेस्ट कंट्रोल करवाना ना भूलें। 
•खास बात यह कि कॉकरोच भगाने के लिए जब भी केमिकल का इस्तेमाल करें तो बच्चों और खाने-पीने की चीजों को दूर रखें। 

बरतें सावधानी, कराएं इलाज 

अस्थमा से स्थायी रूप से छुटकारा पाना मुमकिन नहीं है। हां, इसे कंट्रोल किया जा सकता है और आप सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। इसका इलाज दो तरीके से किया जाता है: 

1. अस्थमा से फौरी राहत देकर

2. बीमारी का मैनेजमेंट यानी उसे काबू में रख कर 

इलाज में दो तरह की दवाएं दी जाती हैं: 

एंटी-इन्फ्लेमेटरी: यह सूजन और जलन को कम करने वाली दवा है। यह विशेष रूप से नाक के जरिए ली जाने वाली दवा है। इस दवा से सांस की नली में सूजन और कफ बनना कम होता है। 

ब्रोंकोडाइलेटर्स: ये दवाएं सांस की नली को फौरन चौड़ा करती हैं। इसे फौरी राहत के लिए दिया जाता है। लंबी अवधि के लिए इनफ्लेमेटरी या हाइपर एक्टिविटी को कम करने की दवा देते हैं। 

इनहेलर: अस्थमा में इनहेलर थेरपी इस्तेमाल करनी चाहिए। लोगों के मन में धारणा है कि इनहेलर थेरपी का इस्तेमाल आखिर में करना चाहिए या फिर डॉक्टर बीमारी बढ़ने पर ही इस थेरपी को देते हैं, लेकिन यह सोच गलत है। जो दवाएं या पाउडर इनहेलर के जरिए दिया जाता है, वह ज्यादा असर करता है। 

योग और घरेलू नुस्खे 

अस्थमा में गर्म पानी का सेवन लाभदायक होता है और इससे आराम मिलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि योग और प्राकृतिक चिकित्सा में दमा का कोई स्थायी समाधान नहीं है। 

हां, इसे नियंत्रित किया जा सकता है। योग की मदद से आप तनाव-रहित िजंदगी जी सकते हैं। यह इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का भी काम करता है। 

नोट: योगाभ्यास िकसी प्रशिक्षित योग गुरु की देखरेख में ही करें। 

•त्रिकोणासन, कोणासन, ताड़ासन, भुजंगासन, धनुरासन, उष्ट्रासन, वक्रासन, अर्द्ध मत्स्येंद्रासन, पर्वतासन, गोमुखासन और शवासन लाभकारी होते हैं। 

•षटकर्मः लाभदायक है। जल नेति, सूत्र नेति, वमन, धौति, दण्ड धौति, वस्त्र धौति। इन क्रियाओं के जरिए कफ बाहर निकलता है। एक्सपर्ट से सीखे बिना ये न करें। 

•कपालभाति, भ्रास्त्रिका, उज्जायी प्राणायाम, ओमकार का उच्चारण भी लाभदायक है। इनसे तनाव कम होता है। 

•मुख्य बात यह है कि आसन और प्राणायाम करते हुए सीने का विस्तार और संकुचन सांस के तालमेल के साथ करना चाहिए यानी विस्तार सांस भरते हुए और संकुचन सांस छोड़ते हुए करना चाहिए। ऐसा करने पर कफ ऊपर की तरफ आता है और सीने पर दबाव कम होता है।

बरतें ये एहतियात जब पड़ जाए अटैक 

•मरीज की जेब या बैग टटोलें और अगर इनहेलर है तो उसे फौरन इसे इस्तेमाल करने को कहें। इससे राहत मिलने के आसार रहते हैं। 

•मरीज के कपड़े ढीले कर दें ताकि वह रिलैक्स हो सके। मरीज के आसपास भीड़ न लगाएं और शांत रहें। 

•मरीज को सीधा बिठाएं, अस्थमा अटैक के दौरान मरीज को लिटाना कतई नहीं चाहिए। 

•अटैक के समय कुछ खिलाने-पिलाने की कोशिश न करें। इस स्थिति में खाना या पानी सांस की नली में फंस सकता है और हालत ज्यादा बिगड़ सकती है। 

•अगर मरीज बोल सकने की स्थिति में नहीं है तो जितनी जल्दी हो सके, उसे पास के अस्पताल ले जाने की कोशिश करें। 

अस्थमा उपचार के लिए प्राकृतिक आयुर्वेदिक उपाय

अस्थमा में, सांस लेने की नली बंद हो जाती है और सांस बहती है, जिसके कारण शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं होती है। लेकिन आयुर्वेद को कुछ चीजों के बारे में बताया गया है जिनका उपयोग अस्थमा को दूर करने के लिए किया जा सकता है। तो चलो जानते हैं।

1. अस्थमा रोगी को हमेशा शहद खाना चाहिए। शहद में एंटीऑक्सीडेंट और जीवाणुरोधी तत्व होते हैं जो श्लेष्म और श्वसन रोगों को हटाते हैं। अस्थमा की शिकायत के समय, एक गर्म पानी में शहद का एक चम्मच पीएं और इसे पीएं।


2. अस्थमा से बचने के लिए, मेथी के बीज खाने के लिए फायदेमंद है। एक मेथी सब्जी खाने, मेथी का लडस और मेथी पाउडर अस्थमा में फायदेमंद साबित हो सकता है। हर दिन गर्म पानी के एक गिलास में मेथी पाउडर के एक चम्मच का सेवन दूर है।


3. जब अस्थमा के लक्षण प्रकट होते हैं, तो एक चम्मच अजवाइन को गर्म पानी में उबाला जाना चाहिए और इसके भाप को खींचना चाहिए। यह अस्थमा के लिए फायदेमंद है। इसके अलावा, अजवाइन पीने और पानी से पीने के बाद भी, अस्थमा में एक लाभ होता है।



4. एक चम्मच शहद जोड़ने के बाद, नींबू के रस का एक चम्मच और अदरक के रस के आधे चम्मच, अस्थमा रोग को रोजाना उपभोग करने के तुरंत बाद हटा दिया जाता है। यह सबसे सस्ता और सरल समाधान है। शहद, अदरक, और नींबू, जीवाणुरोधी तत्व, और एंटीऑक्सीडेंट गुणों में जाना फेफड़ों के संक्रमण और इसकी गंदगी को हटा दें और सांस लेने की नली को अच्छी तरह से साफ करें।

अस्थमा का इलाज

"अस्थमा फेफड़ों में वायुमार्ग से जुड़ी एक चिरकारी बीमारी है। इन वायुमार्गों, या ब्रोन्कियल ट्यूबों के माध्यम से, हवा फेफड़ों के अंदर और बाहर जाती है। यदि आपको अस्थमा है तो आपके वायुमार्ग हमेशा सूजे हुए होते हैं। जब कुछ आपके लक्षणों को ट्रिगर करता है, तो सूजन बढ़ जाती है, और वायुमार्ग के चारों ओर मांसपेशियों के कसने का कारण बनती है। इससे आपको साँस लेने में कठिनाई होती है, और खांसी, घरघराहट, सांस की तकलीफ़ और सीने में जकड़न जैसे लक्षणों का कारण बनता है। अस्थमा का दौरा जीवन को खतरा पैदा कर सकता है, यदि फेफड़ों में वायु प्रवाह गंभीर रूप से अवरुद्ध हो जाता है।

अस्थमा के लक्षण एक एलर्जी पैदा करने वाला तत्व (जैसे कि रैग्वीड, पराग, पशु के बालों की रूसी या धूल के कण) के संपर्क में, हवा में परेशानियों (जैसे धुएं, रासायनिक धुएं या मजबूत दुर्गन्ध) या चरम मौसम की स्थिति से शुरू हो सकते हैं। व्यायाम, सांस की बीमारी, या फ्लू भी आपको अधिक संवेदी बना सकते हैं। 

अस्थमा का प्रबंधन कैसे करें?

अस्थमा का कोई इलाज नहीं है। इसलिए इसके उपचार में, आमतौर पर आपके ट्रिगर्स को पहचानना, उनसे बचने के लिए कदम उठाना, और अपने श्वास को ट्रैक करना यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपकी दैनिक अस्थमा दवाएं आपके लक्षणों को नियंत्रण में रख रही हैं, शामिल हैं।

अस्थमा को अच्छी तरह से प्रबंधित करने के लिए दवाएं आवश्यक हैं। अस्थमा की अच्छी देखभाल में अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के लिए भी उपचार शामिल है जो अस्थमा को प्रभावित कर सकती हैं। एक स्वस्थ जीवनशैली, अस्थमा के लोगों को अपने लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती है। 
अस्थमा के उपचार के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

- लक्षण नियंत्रण में रखना

- 'हमलों' को रोकने

- फेफड़ों को यथासंभव स्वस्थ रखना

- अपने काम या दैनिक दिनचर्या के साथ दखल से अस्थमा को रोकना

- एक पूर्ण और सक्रिय जीवन का आनंद लेने में आपकी सहायता

अस्थमा का उपचार

अस्थमा के उपचार में दो प्रकार की दवाएं शामिल हैं- त्वरित राहत दवाएं और दीर्घकालिक नियंत्रण दवाएं। 
आम तौर पर दैनिक लिया जाता है, ये दवाइयां आपके वायुमार्ग में सूजन को कम करती हैं जो आपके लक्षणों का कारण बनती हैं। ये दवाएं अस्थमा को दिन-प्रतिदिन के आधार पर नियंत्रण में रखती हैं और अस्थमा का दौरा पड़ने की संभावना कम करती हैं।

दीर्घकालिक नियंत्रण दवाओं के प्रकार में शामिल हैं:

1. इन्हेल्ड कोर्टिकॉस्टिरॉइड

2. एंटिइलुकोट्रियेंस या ल्यूकोट्रिने संशोधक

3. क्रॉमोलिन सोडियम

4. लंबे समय से अभिनय करने वाली इन्हेल्ड बीटा 2-एगोनिस्ट 

5. मिथाइलक्थेंथिन

6. इम्युनो- माड्युलेटर्स

त्वरित राहत दवाएं:

त्वरित राहत दवाओं को तत्काल राहत के लिये, लक्षणों के पहले संकेत पर लिया जाता है। त्वरित राहत दवाओं के प्रकार में शामिल हैं:

1. शॉर्ट-अभिनय बीटा एगोनिस्ट्स

2. एंटीकोलिनर्जिक्स

दोनों प्रकार की दवाएं ब्रोन्कोडायलेटर्स हैं। यदि आपको अस्थमा का दौरा पड़ता है, तो एक त्वरित राहत इंहेलर तुरंत आपके लक्षणों को कम कर सकता है। वे फेफड़ों से बलगम को साफ करने में भी मदद करते हैं। 

यदि आपके पास व्यायाम प्रेरित ब्रोन्कोकन्सट्रिक्शन (ई.आई.बी) है, जिसे व्यायाम-प्रेरित अस्थमा के नाम से भी जाना जाता है, तो आपका एलर्जिस्ट सुझा सकता है कि व्यायाम से पहले इन दवाओं का उपयोग करें। 

त्वरित राहत वाली दवाएं अस्थमा के लक्षणों को रोक सकती हैं, लेकिन वे लक्षणों का कारण बनने वाले वायुमार्ग की सूजन को नियंत्रित नहीं करती हैं। अगर आपको लगता है कि आपको अस्थमा के लक्षणों के इलाज के लिए सप्ताह में दो बार से ज्यादा त्वरित-राहत दवा की ज़रूरत होती है, तो आपका अस्थमा अच्छी तरह नियंत्रित नहीं है।

एलर्जी का उपचार

यदि आपका अस्थमा एलर्जी के कारण ट्रिगर होता है या खराब होता है, तो एलर्जी दवाएं मदद कर सकती हैं। 
इसमें शामिल है:

एलर्जी शॉट्स (इम्यूनोथेरेपी): एलर्जी शॉट्स एलर्जी के लक्षणों से मुक्त होने में बहुत प्रभावी हैं और कुछ मामलों में वास्तव में आपकी एलर्जी का इलाज कर सकते हैं। आप आमतौर पर कुछ महीनों के लिए सप्ताह में एक बार, फिर तीन से पांच साल की अवधि के लिए महीने में एक बार यह शॉट्स प्राप्त करते हैं।

ओमालिज़ुम्ब: यह दवा, इंजेक्शन के रूप में दी जाती है हर दो से चार सप्ताह में। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए होती है जिनके एलर्जी और गंभीर अस्थमा हैं। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बदलकर कार्य करती है। "

     गर्मी के दिनों में खयाल रखना जरूरी

गर्मियों में हम ज्यादातर समय घर के बाहर बिताते हैं जिससे इंडोर एलर्जन का एक्सपोजर कम होने लगता है
गर्मी के मौसम में अस्थमा के मामलों में कमी आती है, इसलिए कई लोग अस्थमा के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। लेकिन ऎसा नहीं है कि गर्मियों में अस्थमा के ट्रिगर यानी कारक वातावरण में उपस्थित नहीं रहते बल्कि कुछ ट्रिगर जैसे वायु प्रदूषण, पराग कण, धूल आदि की उपस्थिति अन्य मौसमों की तुलना में बढ़ जाती है। गर्मी और उमस भी अस्थमा के लिए खतरे का काम करती हैं, इसलिए जरूरी है कि इस मौसम में भी पूरी सावधानी रखी जाए ताकि अस्थमा अटैक का खतरा न रहे। 


इसलिए आती है कमी

1. गर्मी का मौसम अस्थमा के लक्षणों को कम करने में सहायता करता है।

2. गर्मियों में हम ज्यादातर समय घर के बाहर बिताते हैं जिससे इंडोर एलर्जन का एक्सपोजर कम होने लगता है।

3. इसके अतिरिक्त कोल्ड और फ्लू, जो खतरनाक अस्थमा अटैक के प्रमुख कारण हैं, गर्मियों में इनकी चपेट में आने की आशंका कम होती है। गर्मी में सांस की नलियां भी सिकुड़ती नहीं हैं।

क्या करें, क्या न करें

1. गर्मियों में मिलने वाले कुछ फल और सब्जियां भी अस्थमा अटैक का कारण बन सकती हैं जैसे नाशपाती, तरबूज, खरबूजा, सेब या दूसरे ताजा फ ल और सब्जियां। इसलिए इन चीजों को प्रयोग में लेने से पहले अच्छी तरह धोकर प्रयोग में लें। फिर भी तकलीफ हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

2. ऎसे स्थानों पर जाने से बचें जहां वायु प्रदूषण हो। 

3. लक्षण दिखाई न दें तो भी डॉक्टरी सलाह से समय पर दवाएं लें। 

4. डॉक्टरी सलाह के बिना इलाज न बदलें। 

5. धूप में बाहर निकलने से पहले दवा और इन्हेलर साथ लेकर जाएं। 

6. क्लोरीन की गंध से एलर्जी हो तो स्वीमिंग पूल में न जाएं। रात में खिड़कियां खोलकर न सोएं, एलर्जी और अस्थमा से बचने के लिए एयर कंडीशनर का प्रयोग करें। 

ठंड से बढ़ जाता है अस्थमा, ऐसे बचें

ठंड के मौसम में अस्थमा के अटैक होने का खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पिछले चार साल में अस्थमा की दवाइयों की बिक्री 43% तक बढ़ गई है। पिछले भी मरीजों की संख्या 15% तक बढ़ गई। विशेषज्ञों के अनुसार ठंड में सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोतरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है। ठंड के मौसम में सांस की नलियों में सूजन के कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड़ जाती हैं, जिससे बलगम जैसा पदार्थ जमा होने लगता है। यह नलियों को सांस लेने में प्रभावित करता है। इससे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। 

रोग से नजात पाने के लिए ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा असरकारी है। इस थेरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकोस्टेरॉयड सांस की नलियों में जाता है। सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए 25 से 100 माइक्रोग्राम कोरटिकोस्टेरॉयड की ही जरूरत होती है, लेकिन ओरल दवाओं के जरिए 10 हजार माइक्रोग्राम शरीर में चली जाती है। 

अस्थमा रोगी टैबलेट के माध्यम से लक्षणों को कम करने के लिए 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा लेता है। ये दवाएं पहले रक्त में घुल कर फेफड़े तक पहुंचती हैं, लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरॉयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, इसलिए लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरॉयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है। खानपान में भी बदलाव करके अस्थमा के लक्षणों को कम किया जा सकता है। 

ओमेगा-3 फैटी एसिड 

ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, ट्यूना, ट्राउट जैसी मछलियों में एवं मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड केवल हमारे फेफड़ों के लिए भी लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है। 


फोलिक एसिड 

पालक, ब्रोकोली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तबदील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है। 


विटमिन सी 

संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबेरी, अंगूर, अनानास व आम में भरपूर विटमिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं। 


लहसुन 

लहसुन में मौजूद एल्लिसिन तत्व होता है जो फेफड़ों से मुक्त कणों को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है। 


बेरी 

ब्लूबेरी, रास्पबेरी व ब्लैकबेरी में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं। 
कैरोटीनॉयड ऐंटीऑक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है। फेफड़ों की कैरोटीनॉयड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें। 
सर्दियों में सही इलाज, दवाओं, खानपान से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। 



बच्चे के अस्थमा को इस प्रकार करें कंट्रोल

जैसा की आप जानते ही हैं कि अस्थमा यानि दमा एक बहुत ही घातक बीमारी है और यह कभी भी किसी को भी हो जाती है, इस बीमारी में रोगी का खास ध्यान रखना पड़ता है खासकर जब यह बीमारी किसी बच्चे हो तब अस्थमा कभी पूरी तरह से सही नहीं होता है पर यदि हम कुछ खास टिप्स पर ध्यान दें तो यह काफी हद तक सही और कंट्रोल किया जा सकता है। बच्चे में भी अस्थमा की शिकायत हो सकती है क्योंकी बच्चे अपना अधिक समय बहार खेल कर ही बिताते हैं, बच्चे में यह समस्या किसी कुत्ते या बिल्ली या फिर धुल के कणो के कारण होती है, इसके अलावा साइनस इन्फेक्शन,सर्दी या ब्रोंकाइटिस भी इसके होने का कारण हो सकते हैं।

बच्चे के भोजन में मूंगफली,अंडे, दूध, मछली आदि को शामिल ना करें

इससे भी इस बीमारी के लक्षण बढ़ जाते हैं इसलिए अस्थमा के लक्षण दिखने पर इस प्रकार के आहार को लेने से बचें कई बार बच्चे को एलर्जी भी हो जाती है इसके जोखिम को कम करने के लिए आप रोज अपने बिस्तर के कवर को बदलें तथा चादर आदि को रोज गर्म पानी से धोएं। पालतू जानवर को यदि आप अपने घर में रखते हैं तो उसको रखने से बचें और बच्चे को भी अन्य जानवरों के साथ खेलने न दें क्योंकी इससे खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।

इसके अलावा अपने घर में धुंआ न रहने दें और बहार भी धुंए में न निकलें साथ ही पेन किलर (एनएसएआईडी) या एस्पिरिन जैसी दवाओ से भी अस्थमा होने का खतरा बढ़ जाता है इसलिए इस प्रकार की दवाओ को लेने से बचें। अपने बच्चे का ध्यान रखें और जानें की बच्चा अपने फेफड़ों से हवा को कितनी जल्दी या देर में बाहर निकाल रहा है, यह बात भी सुनिश्चित करें कि आप अपने बच्चे को समय पर दवाई दें रहें हैं या नहीं असल में दवाएं गले के वायु मार्ग के व्यास और बैचनी को सामने बनाए रखने में बहुत ज्यादा सहायक होती हैं।

अस्थमा में छोटे बच्चों के लिए नेब्युलाइजर का प्रयोग किया जा सकता है पर यदि बच्चा बड़ा है तो उसको आप इनहेलर को प्रयोग करना सिखाये। बच्चे को अक्सर बाहर अन्य बच्चों के साथ में खेलने से दूर रख जाता है पर यदि बच्चा सही समय पर सही से दवाएं ले रहा है तो उसको आप खेलने से न रोके, वह इस अवस्था में खेल सकता है। बच्चे को यदि अस्थमा है तो इस बारे में आप बच्चे के टीचर, कोच और उसके दोस्त आदि से बात करें और उनको इसकी जानकारी दें ताकि कभी अस्थमा का दौरा पड़ने पर वह उसको दवाए दें सके और सही सहायता कर सकें। दमे के दौरे से बच्चे के लिए कंट्रोल ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है इनके अंतर को समझने के लिए आप अपने डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं।


काफी से अस्थमा का ईलाज

 ये तो आप जानते ही होंगे अस्थमा एक सांस संबंधी बीमारी है। अस्थमा से पीडि़त व्यक्ति को मौसम परिवर्तन के साथ ही कई समस्याओं का सामना पड़ता है। इतना ही नहीं अस्थ्मा रोगी को धूल-मिट्टी, प्रदूषण इत्यादि से भी बचकर रहना होता है। अस्थमा के उपचार के लिए आमतौर पर दवाईयों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन जिन लोगों में अस्थमा बहुत अधिक बढ़ जाता है उन पर अस्थमा की दवाएं काम करना बंद कर देती हैं। जिसके कारण उन्हें इन्हेलर दिया जाता है। इतना ही नहीं अस्थामा रोगियों को अपने खान-पान का भी खास ख्याल रखना पड़ता है। ऐसे में अस्थमा रोगियों को चाय-कॉफी से परहेज रखने के लिए कहा जाता हैं। अभी तक आम लोगों की भी यही धारणा थी कि वाकई चाय-कॉफी अस्थमा रोगियों को नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन अब ऐसा नहीं। दरअसल, अस्‍थमा से जुड़े भ्रम और तथ्‍य बहुत है। आइए जानें कैसे अब कॉफी से अस्थमा का इलाज संभव है।

जी हां, यह सच है। अब अस्थमा रोगियों को ईलाज के लिए कॉफी आराम से दी जा सकती है बिना किसी आशंका के क्योंकि कॉफी नुकसान पहुंचाने के बजाय फायदा ही करती है।हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि कैफीन में मौजूद तत्व अस्थमा की ही दवा हो सकते हैं और इनका इस्तेमाल अस्थमा रोगियों द्वारा अस्थमा नियंत्रण के लिए किया जाता है।कुछ शोधों के दौरान अस्थमा से ग्रसित व्यक्तियों को कॉफी दी गई जिनमें सकारात्मक रूप से प्रभावी लक्षण पाए गए। यानी अब आप भी अस्थमा के उपचार के लिए कॉफी का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अस्थमा के उपचार के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
सबसे पहले यह सुनिश्चित कर लें आपको कॉफी किस तरह की पीनी है। आप अपनी पसंद की कॉफी लें जिससे आपको स्वाद भी आएं और ऐसा प्रतीत ना हो कि आप किसी बीमारी के कारण कॉफी पी रहे हैं।जब आपको लगे कि आपको अस्थमा होने की आशंका है या फिर अटैक पड़ने के लक्षण दिखें तो आपको एक कप कॉफी बनानी चाहिए। एक कप कॉफी में 1/3 हिस्सा ही कॉफी का पीएं, इससे आपको भरपूर मात्रा में कैफीन मिल जाएगी ।कॉफी पीने के लगभग 10 मिनट बाद तक इंतजार करें। इसमें इस बात पर नजर रखें कि क्या कॉफी के आप पर कोई सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। अगर नहीं, तो आपको 1/3 कॉफी एक बार फिर पीनी होगी।एक बार फिर देखें 10 मिनट के भीतर आप कैसा महसूस कर रहे हैं। आप अगर अभी भी अस्थमा के लक्षणों को महसूस कर रहे हैं और आपके पास कोई और मेडीकल ट्रीटमेंट लेने के लिए नहीं है तो आपको थोड़ी बहुत कॉफी का सेवन और करना होगा, इसके बाद आप आराम करें।तीसरी बार कॉफी पीने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं, इस पर गौर फरमाएं। यदि अबकी बार भी आपको आराम नहीं मिला है तो यह देखने की जरूरत है कि अस्थमा के लक्षण कैंसे हैं और यदि आपकी हालत बहुत खराब है तो आपको अतिरिक्त मेडीसन की जरूरत पड़ सकती हैं।कहने का अर्थ है कि यदि अस्थमा के लक्षणों को शुरूआती समय में पहचान लिया जाएं तो कॉफी से आपको आराम मिलेगा लेकिन यदि आपकी हालत बहुत बिगड़ गई है तो संभव है कि कॉफी का आप पर कोई असर ना हो

अस्थमा को जड़ से खत्म करते है ये 8 घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे

अस्थमा का सफल उपचार : सांस लेने में तकलीफ होने को अस्थमा कहते है। किसी चीज से एलर्जी या प्रदूषण के कारण लोगों में यह समस्या आम देखने को मिलती है। अस्थमा के कारण खांसी, सांस लेने में तकलीफ और नाक से अवाज आने जैसी प्रॉब्लम होती है। वैसे तो लोग इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए होम्योपैथिक दवाओं का सेवन करते है लेकिन कुछ घरेलू उपायों द्वारा भी इस समस्या से राहत पाई जा सकती है। आज हम आपको ऐसे ही 
कुछ अस्थमा के घरेलू उपाय बताएंगे जिससे आप इस समस्या से छुटकारा पा सकते है।


1. मेथी के दाने
मेथी को पानी में उबाल कर इसमें शहद और अदरक का रस मिलाकर रोजाना पीएं। इससे आपको अस्थमा की समस्या से राहत मिलेगी।

2. आंवला पाउडर
2 टीस्पून आंवला पाउडर में 1 टीस्पून शहद मिलाकर सुबह खाली पेट सेवन करें। रोजाना इसका सेवन अस्थमा को कंट्रोल करता है।

3. पालक और गाजर
पालक और गाजर के रस को मिलाकर रोजाना पीने से भी अस्थमा की समस्या दूर होती है।

4. पीपल के पत्ते
पीपल के पत्तों को सूखा कर जला लें। इसके बाद इसें छान इसमें शहद मिलाएं। दिन में 3 बार इसे चाटने से अस्थमा की समस्या कुछ समय में ही दूर हो जाएगी।

5. बड़ी इलायची
बड़ी इलायची, खजूर और अंगूर को सामान मात्रा में पीसकर शहद से साथ खाएं। इसका सेवन अस्थमा के साथ पुरानी खांसी को भी दूर करता है।


6. सोंठ
सोंठ, सेंधा नमक, जीरा, भुनी हुई हींग और तुलसी के पत्ते को पीसकर 00 मि.लीटर पानी में उबाल लें। इसे पीने से अस्थमा की समस्या दूर हो जाएगी।


7. तेजपत्ता
तेजपत्ता और पीपल के पत्ते की 2 ग्राम मात्रा को पीसकर मुरब्बे की चाशनी से साथ खाएं। रोजाना इसे खाने से अस्थमा की समय कुछ समय में ही गायब हो जाएगी।


8. सूखी अंजीर
सूखी अंजीर के 4 दाने रात को पानी में भिगो दें। सुबह खाली पेट इसे पीसकर खाने से अस्थमा के साथ कब्ज भी दूर हो जाएगी।

अस्थमा के अचूक घरेलू इलाज.


सहजन की पत्तियां

180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नींबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है। 


अदरक

अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है। मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।


लहसुन

लहसुन भी दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियाँ मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।


अजवाइन

दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। 
इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएं और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है। 

दमे को ठीक करने के घरेलू नुस्खे

* दमे का ईलाज अदरक की देखभाल से

एक अदरक का टुकड़ा लें, उसमें 2 चम्मच अनार के बीज और एक चम्मच शहद मिलाएं और इन सबको एक बर्तन में मिलाकर पीसें। इस मिश्रण से रस निकालें तथा इस मिश्रण का सेवन दिन में 2 से 3 बार करें। इसके अलावा आप अदरक के पाउडर में 1 चम्मच पानी मिलाकर रात को सोने से पहले पी सकते हैं। फेफड़ों में मौजूद विष को निकालने के लिए 1 चम्मच अदरक के रस को एक चम्मच शहद और 2 चम्मच मेथी के बीज के साथ मिलाएं। मेथी के बीज को रातभर भिगोकर रखें। इस मिश्रण का सेवन दिन में 2 बार करें। आप कच्चे अदरक में थोड़ा नमक लगाकर भी खा सकते हैं।


* दमे के घरेलू नुस्खे लौंग से

लौंग दमे का उपचार करने का एक बेहतरीन घरेलू तरीका है। लौंग में कई औषधीय गुण होते हैं। इसमें एंटी माइक्रोबियल, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, एंटीफंगल (antimicrobial, antiseptic, antiviral, antifungal) तथा कामोत्तेजक (aphrodisiac) गुण मौजूद होते हैं। लौंग में कैल्शियम, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, आयरन, सोडियम,फॉस्फोरस, पोटैशियम, विटामिन ए और सी (calcium, hydrochloric acid, iron, sodium, phosphorous, potassium, and vitamin A, C) जैसे खनिज पदार्थ भी मौजूद होते हैं। 5 से 6 लौंग लें और इन्हें आधे गिलास पानी में उबाल लें। ये प्रक्रिया पूरी हो जाने पर इसमें एक चम्मच शहद मिश्रित कर लें। बेहतर परिणामों के लिए इसका सेवन दिन में दो बार करें।


*दमा का घरेलू इलाज के लिए सरसों का तेल 

जो व्यक्ति दमे का शिकार होता है वो आमतौर पर सांस लेने के द्वार में हुई किसी परेशानी की वजह से सांस लेने में कठिनाई महसूस करता है। इस समस्या को दूर करने के लिए सरसों के तेल से मालिश करें। इससे साँसों की समस्या दूर होगी। 3 चम्मच सरसों का तेल लें और उसमें कपूर मिलाकर गर्म करें। अब इसे हल्का ठंडा होने दें और छाती और पीठ के ऊपरी हिस्से में मालिश करें। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराएं जब तक आपको साँसों की समस्या से आराम ना मिल जाए।


*दमे के घरेलू नुस्खे शहद से

शहद दमे की समस्या को दूर करने का काफी प्राचीन उपचार माना जाता है। शहद खुद में मौजूद अल्कोहल (alcohol) तथा बेहतरीन तेलों के माध्यम से अस्थमा के लक्षण कम करने में आपकी काफी मदद करता है। अगर आप सिर्फ ताज़ा और शुद्ध शहद की खुशबू भी सूंघ लें, तो भी इससे आपको काफी ज़्यादा फायदा पहुंचता है, जैसा कि कई लोग दावा कर चुके हैं। एक चम्मच शहद को एक गिलास गर्म पानी में मिश्रित करें तथा तथा इसे दिन में 3 बार धीरे धीरे पियें। वैकल्पिक तौर पर एक चम्मच शहद में आधा चम्मच दालचीनी का पाउडर मिश्रित करके इसका सेवन कर लें। अगर आप सोने जाने से पहले इसका सेवन कर सकें तो आपको इससे और भी ज़्यादा फायदा प्राप्त होगा। इसके सेवन से आपके गले से बलगम निकलने में सहायता मिलेगी और इससे आप काफी चैन की नींद सो सकेंगे।


* अस्थमा के घरेलू उपचार अंजीर से 

अंजीर साँसों से सम्बंधित किसी भी समस्या के उपचार के लिए काफी उत्तम है। 3 से 4 अंजीर रात भर भिगोकर रखें। अगले दिन खाली पेट में इन अंजीरों को खाकर पानी पियें। इस नुस्खे से आपके खून में पोषक तत्वों की मात्रा जाएगी एवं दमे के लक्षणों से आपको मुक्ति मिलेगी।

अस्थमा का जड़ से इलाज बाबा रामदेव के उपाय और नुस्खे

इसे हम दमा भी कहते हैं यह एक श्वसन रोग हैं, हमारे श्वसन में जब किसी वजह से सूजन आ जाती हैं तो इससे श्वसन नली सिकुड़ जाती हैं इसी वजह से रोगी को सांस चलने लगती हैं. ऐसे में रोगी की सांसे फूल जाती हैं, छोटी सांस लेनी पड़ती हैं, छाती में कसाव सा महसूस होने लगता है 

आदि.
अस्थमा की बीमारी छोटे बच्चों से लेकर वयस्कों तक किसी को भी हो सकती हैं. रोगी इस रोग से मुक्ति पाने के लिए हर तरह का संभव प्रयास करता है, लेकिन उसमे बड़ी मुश्किल से ही कोई दवा आराम करती है. और वह आराम भी टेम्पररी होता है इसीलिए हम यहाँ आपको परमानेंट इसे ठीक करने के तरीके बता रहे है, निचे पड़े.हम यहां आपको बाबा रामदेव व राजीव दीक्षित जी द्वारा बताये गए अस्थमा के आयुर्वेदिक घरेलु नुस्खे बताएंगे जिनके जरिये आप घर पर ही इस को ठीक कर सकते हैं. यह बताये जाने वाले उपाय 100% असरकारी हैं


अस्थमा के प्रकार : एक एलर्जी व प्रदुषण के कारन होता हैं वहीं दूसरी तरह का अत्यधिक श्रम, व्यायम जिसमे सांस तेजी से लेनी पड़ती हो आदि के कारण होता हैं.


अस्थमा के लक्षण

धूल से भरे वातावरण में रहनाघर में पालतू जानवर के होने सेवायु प्रदुषणखुश देने वाले प्रसाधन का ज्यादा प्रयोग करनास्मोकिंग करनाशराब का ज्यादा सेवनएलर्जी की शिकायत होने सेदवाइयों के साइड इफेक्ट्स होने सेअत्यधिक तनाव में रहने सेजंक फूड्स का ज्यादा सेवननमक ज्यादा खाने सेजेनेटिक्स


अस्थमा के लक्षण

सांसे लेने में दिक्क्त होनासीने में जकड़न आनासांस लेते वक्त घरघराहट की आवाज आनासांस लेते समय तेज पसीना आनाबेचैनी होनासिर का भारी होनाउलटी होनाखांसी चलना आदि यह सामान्य अस्थमा के लक्षण हैं.

अस्थमा की बीमारी में जब सांस चलने लगे और सांस लेने में परेशानी आये तो किसी छोटे बर्तन में थोड़ी सी शहद डालकर उसे सूंघना चाहिए, इससे तुरंत ही सांस में आराम मिलता हैं.

सिर्फ एक दिन में अस्थमा से पाए आराम
अस्थमा में यह उपाय सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही किया जाता हैं. पीपल के पेड़ की छाल के अंदर के हिस्से को निकालकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर लें और धुप में सूखा लें, छाल के सुख जाने के बाद इसे बारीक़ पाउडर की तरह पीस ले. अब पूर्णिमा के दिन चावल की खीर बनाये और शाम को करीबन 6 बजे इस खीर को एक प्याले में अलग रख लें व इसमें पीपल के पेड़ की छाल का पाउडर 10-12 ग्राम मिला दें और अपने घर की छत पर रख दें, छत पर ऐसी जगह पर रखे जहां पर चन्द्रमा की किरन इस खीर के प्याले पर अच्छे से पड़ती हो. अब आपको शाम 6 बजे से लेकर रात 11 बजे तक इसको छत पर ही चन्द्रमा की किरण में रखे रहने दें और फिर 11 बजे बाद इस खीर को खाले, यह दमा व अस्थमा का पक्का घरेलु इलाज लाभकारी हैं.


नोट : इस खीर को खाने के बाद रात भर रोगी को सोना नहीं हैं, किसी भी तरह उसे पूरी रात जागना हैं तभी जाकर यह खीर अस्थमा को जड़ से मिटा पाएगी. यह उपाय सिर्फ पूर्णिमा की रात में ही काम करता हैं यह अस्थमा का एक चमत्कारी उपाय हैं आप जरूर करे 100% उपचार करती हैं.
Pollution व एलर्जी के कारण अस्थमा होने पर पीपल के पेड़ की छाल को कूटकर के इसका सुबह शाम काढ़ा बनाकर के एक दो महीने तक पिए. जिसे भी एलर्जी व पर्यावरण के कारण हुआ है उसका 100% इस घरेलु उपाय (home remedies) से अस्थमा दूर हो जायेगा.


धतूरा से करे उपचार

अस्थमा के लिए बराबर मात्रा में धतूरे के फल व पत्तियों को लेकर छाया में सूखा ले, सुख जाने के बाद के बाद इन दोनों को बारीक़-बारीक़ कूट या कुचल लें. फिर उस मिश्रण को मिटटी की हंडियां में डाल दें और हंडियां का मुंह किसी कपडे से बांध दें और ऊपर से कपडे पर गीली मिटटी लगा दें.अब आग के अंगारो पर इस मिटटी की हंडिया को रख दें जब इसके अंदर रखे धतूरा के पत्ते व फल जल कर भस्म हो जाये तो उसे उतारकर के अलग रख लें. अब रोजाना सुबह व शाम आधा ग्राम की मात्रा से कम इस भस्म को लेकर के शहद में मिलाकर के रोगी को चटाये. यह कफ और अस्थमा के घरेलू उपचार हैं.

Asthma Attack Remedies

जिनको इस रोग का दौरा पढ़ रहा हो उस समय छाया में सुखाये हुए धतूरे के पत्तों को चिलम में तम्बाकू की तरह भरकर पिए.  इससे अटैक का तुरंत इलाज होता हैं.दमा – अस्थमा का अटैक आने पर गर्म पानी में निम्बू निचोड़कर पिने से भी आराम मिलता हैं.

अगर आप होमियोपैथी उपचार की दवा लेने का सोच रहे हैं या एलॉपथी का प्रयोग करना चाहते हैं तो में आपसे कहूंगा की, यह सभी अस्थमा रोग को दूर नहीं करती बल्कि यह उस बीमारी को दबाती हैं. डॉक्टर खुद मानते हैं की इस सांस अस्थमा के रोग का ट्रीटमेंट एलॉपथी और होमियोपैथी में नहीं कर सकती.

अस्थमा में राजीव दीक्षित जी – आधा कप गौ मूत्र रोजाना सुबह के समय तीन महीनो तक पिने से 101% लाभ मिलता हैं. फिर रोगी को जिंदगी में दुबारा या बीमारी नहीं होती. हमने इस आयुर्वेदिक नुस्खे से हजारो लोगों का उपचार किया हैं.अस्थमा में दालचीनी को शहद में डालकर के 5-7 मिनट तक रगडिये और फिर इसको चाट कर रोगी को खिला दें, यह उपाय वात-कफ व शरीर के 50 रोगो का उपचार करता हैं. दमा में भी इससे लाभ होता हैं.

acupressure for asthma

बाए हाथ की आखिरी तीन उंगलियों के निचे के हिस्से को दिन में 7-8 बार रगड़ना चाहिए, क्योंकि यह क्षेत्र श्वसन तंत्र का होता हैं इसको रगड़ने से श्वसन तंत्र अस्थमा में अस्थमा में अत्यंग लाभ होता हैं.इस बीमारी के रोगी को रात को सोने से पहले गर्म पानी पीकर सोना चाहिए इससे रोग में लाभ होता हैं और चैन की नींद आती हैं.

5 से 8 दिन में पूरा आराम

दमबेल – रोजाना सुबह के समय दमबेल के एक पत्ते को दातों से चबाकर खाने से 5 से 8 दिनों में यह बीमारी ख़त्म हो जाती हैं. दमाबेल का पत्ता खाने के बाद एक घंटे तक कुछ भी न खाये व दिन में भरपूर मात्रा में पानी पीते रहे. यह उपाय अत्यंक लाभकारी हैं. इसके सेवन से शरीर में मौजूद अस्थमा कारक शरीर से बाहर निकल जाते हैं. (अगर रोगी को यह पत्ता कहते ही उलटी होती हैं तो इस पत्ते के टुकड़े-टुकड़े कर के थोड़ी-थोड़ी देर में खाये)

दमबेल

बाबा रामदेव पतंजलि अस्थमा की दवा

दिव्य त्रिकाटू चूर्ण – श्वसन तंत्र की सफाई करता हैं, सारे कचरे को शरीर से बाहर निकाल देता हैं.दिव्य स्वसारी रस – इसके सेवन से भी  रोगियों को अत्यंत लाभ मिलता हैं, इसके सेवन से कोई नुकसान नहीं होता.बाबा रामदेव द्वारा बताई गई अस्थमा की दवा के बारे में आप पतंजलि के स्टोर पर जाकर और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, इनको लेने की विधि भी वह आपको अच्छे से समझा देंगे.ऐसा भोजन करना चाहिए जो जल्दी से पच जाए, तेज मसालेदार तेल से बनी चीजों का परहेज करना चाहिए. इसमें रोगी को हरी सब्जियां खाना चाहिए इस तरह आहार पर ध्यान देंगे तो बताये गे देसी नुस्खे भी अस्थमा में बेहतर असर दिखाएंगे.

बिना दवा के छुटकारा पाए

साँस अस्थमा का इलाज में स्वर चिकित्सा घरेलु उपाय – रोगी को भोजन करने से पहले व भोजन करने के बाद तक दाया स्वर (सूर्य स्वर) चलाना चाहिए, इसके लिए आप बाए बाए स्वर (चंद्र स्वर) में रुई अथवा कुछ लगा दें जिससे बाया स्वर बंद हो जाए. यानी आपको सिर्फ दाया स्वर से ही स्वानं लेनी हैं. भोजन करने के 15 मिनट पहले से ही यह शुरू कर दें और भोजन करे के बाद 20-25 मिनट तक यही चलने दें. इससे अस्थमा की शिकायत उतपन्न होना बंद हो जाती हैं, प्राकृतिक चमत्कारी बिना दवा के दमा का इलाज.

अस्थमा के लिए योग – रोगी को रोजाना नियमित रूप से कपालभाति, अनुम विलोम प्राणायाम कम से कम 10 मिनट रोजाना करना चाहिए. अगर इस रोग को जल्दी खत्म काना चाहते हैं तो दोनों प्राणायाम को 25-25 मिनट्स तक करे, इनके प्रयोग से चमत्कारिक लाभ होता हैं.

जब भी आपको दौरे आये, सांस चलने लगे तो उस समय हल्दी का दूध पिए जल्द आराम मिलेगा.इस रोग में गर्म कॉफ़ी पिने से तुरंत राहत मिलती हैं.सरसों और कपूर के तेल को गर्म करके छाती पर मालिश करने से इस सांस की बीमारी के लक्षण ख़त्म होते हैं.

तो दोस्तों इस लेख अस्थमा का पक्का इलाज की दवा के नुस्खे उपाय जो हमने बताये हैं यह 101% देंगे. यह खुद बाबा रामदेव, राजीव दीक्षित जी द्वारा बताये गए हैं. बाबा जी ने हजारों लोगों की दमा की बीमारी को ख़त्म किया है.

दमा के मरीज़ ना लें ये आहार

अस्थमा के मरीज रखें आहारों के सेवन में सावधानी।डेयरी पदार्थ और प्रोसेस्ड फूड का सेवन नुकसानदायक। अंडे, खट्टे फल, गेहूं, सोया बढ़ाते है अस्थमा का रोग।ना खायें कफ को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे दही।

अस्थमा पीडि़तों को ऐसे आहार लेने से भी बचना चाहिए जिससे वे अस्थमा अटैक से बच सकें। कई बार अस्थमा के मरीजों को पता नहीं होता जो आहार वे ले रहे हैं वे उनके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक हो सकता है और उन्हें अस्थमा अटैक पड़ सकता है। अस्थमा रोगियों को अपने आहार के प्रति जागरूक होना चाहिए। जब आपको इस बात का अहसास होने लगे कि कुछ खाद्य पदार्थों के सेवन से आपका स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो जाता है, तो आपको चाहिए कि आप उन खाद्य पदार्थों को खाने से बचें। अस्थमा को बढ़ाने वाले कई पदार्थ हो सकते हैं-


डेयरी पदार्थ और प्रोसेस्ड फूड

अस्थमा के मरीजों को दूध और इससे बने खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। जैसे आइसक्रीम, दही, पनीर इत्यादि। दरअसल, अस्थमा के मरीजों में डेयरी उत्पादों के सेवन से खांसी, छींक और कफ जैसी समस्या बढ़ जाती है।प्रोसेस्ड फूडके खाद्य पदार्थ रोगियों के लिए नुकसानदेह होते हैं, लेकिन जो मरीज इनका नियमित रूप से सेवन करते हैं उनमें अस्थमा का जोखिम और बढ़ जाता है और अस्थमा एलर्जिक अस्थमा में बदल सकता है। ऐसा उन रोगियों के साथ खासतौर पर होता है जिनको अकसर अस्थमा का अटैक पड़ता रहता है।मरीजों को नट्स के सेवन से बचना चाहिए। इनके सेवन से ना सिर्फ अस्थमा पीडि़तों की समस्याएं बढ़ जाती हैं बल्कि अस्थमा अटैक भी जल्दी-जल्दी पड़ने लगते हैं। हाल ही में आए शोध से पता चला है कि फास्ट फूड के सेवन से अस्थमैटिक बच्चों की समस्याएं गंभीर हो जाती हैं। अधिक जंकफूड के सेवन से बच्चें बीमार रहने लगते हैं और कई बार लगातार उनको अस्थमा के अटैक पड़ने लगते हैं।


अस्थमा को बढ़ाने वाला फूड

अंडे, खट्टे फल, गेहूं, सोया और इससे बने पदार्थ अस्थमा रोगियों के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। अस्थमा  रोगियों को अपने आहार से इन खाद्य पदार्थों को बिल्कुल हटा देना चाहिए। कई लोगों के लिए खट्टे फल और अंडे फायदेमंद हो सकते हैं लेकिन कई मरीजों में इन खाद्य पदार्थों से समस्याएं होने लगती हैं।  ऐसे खाद्य पदार्थ जिनसे कफ अधिक होता है- केला, पपीता, चावल, चीनी और दही। इसके साथ ही कॉफी, स्ट्रांग टी, सॉस और मादक पेय पदार्थ अस्थमा को बढ़ाने में सहायक है, ऐसे में अस्थमा के मरीजों को इन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
  

जितना संभव हो आपको ऐसा आहार नजरअंदाज करना चाहिए। आपको अपनी स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। यदि आप अपना ध्यान रखेंगे तो निश्चित रूप से आप अस्थ‍मा को बढ़ने से रोक सकते हैं।


अस्थमा में क्या खाएं और किन चीजों से रखें परहेज

प्रदूषण के कारण बहुत से लोगों को सेहत से जुडी परेशानियां होती हैं, इनमें से एक है सांस लेने की तकलीफ यानि अस्थमा। इसे दमा रोग भी कहा जाता है, इसके लक्षण हैं सांस लेते समय आवाज आना,सांस फूलना,बहुत खांसने पर कफ आना,सांस लेने में परेशानी होना,दम घुटना आदि। इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर सही समय पर डॉक्टरी जांच करवाना और इलाज करवाना बहुत जरूरी है। इस रोगी को अपने खान-पान का पूरा ध्यान रखना चाहिए। आइए जानें अस्थमा रोग में किस तरह के पदार्थ खाने चाहिए और किनसे बनाना चाहिए दूरी। 

खाएं ये आहार 

विटामिन सी

शरीर में विटामिन सी की कमी होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है।  जिससे बॉडी जल्दी बीमारियों की चपेट में आ जाती है। अस्थमा के रोगी को अपने आहार में विटामिन सी से भरपूर फलों का सेवन करना चाहिए। संतरा, नींबू, अंगूर, कीवी, आंवला, ब्रोकोली, टमाटर,शिमला मिर्च और बूशेल्स स्प्राउट में यह भरपूर मात्रा में होता है।


बीटा कैरोटीन

बीटा कैरोटीन अस्थमा के रोगी के लिए बहुत फायदेमंद है। गाजर में यह तत्व भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा खुबानी, चेरी, हरी मिर्च, शिमला मिर्च और शकरकंद खाना भी लाभकारी है। 


शहद और दालचीनी

रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद में 2-3 चुटकी दालचीनी का पाउडर मिक्स करके खाएं। सुबह उठने के बाद फिर यही प्रक्रिया दोहराएं। कुछ दिन लगातार इस्तेमाल से दमा रोग में बहुत आराम मिलेगा।

कॉफी

वैसे तो कुछ रोगों में कैफिन से बने पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक होते हैं लेकिन  अस्थमा में कॉफी पीना फायदेमंद माना जाता है लेकिन दिन में 2 बार से ज्यादा कॉफी का सेवन न करें। 


तुलसी 

तुलसी की चाय या फिर 1 कप गर्म पानी में 2-3 पत्ते तुलसी के डालकर पीने से बहुत फायदा मिलता है। 

रखें इन चीजों से परहेज

1. तले हुए खाने से दूरी बना लें। जितनी हो सके तली चीजें आहार में शामिल न करें। 

2. अस्थमा में मूंगफली खाने से परहेज करना चाहिए। 

3. इस रोग में ज्यादा नमक का सेवन करना भी सही नहीं है।

4. जंक फूड और डिब्बाबंद भोजन,बासी खाना,मक्खन आदि वसा युक्त आहार इस परेशानी को और भी बढ़ा सकते हैं। 

अस्थमा के रोगियों के लिए डायट .

  

इस आधुनिक समय की जो सबसे बड़ी समस्या है वो है इस समय का प्रदूषण। इस कारण आप जिंदगी पर तो इसका असर पड़ ही रहा है। साथ ही लोगो को इस कारण कई भयंकर बीमारियों से भी ग्रसित होना पड़ रहा है।

प्रदूषण के कारण बहुत से लोगों को सेहत से जुडी परेशानियां होती हैं, इनमें से एक है सांस लेने की तकलीफ यानि अस्थमा। इसे दमा रोग भी कहा जाता है, इसके लक्षण हैं सांस लेते समय आवाज आना,सांस फूलना,बहुत खांसने पर कफ आना,सांस लेने में परेशानी होना,दम घुटना आदि।

इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर सही समय पर डॉक्टरी जांच करवाना और इलाज करवाना बहुत जरूरी है। इस रोगी को अपने खान-पान का पूरा ध्यान रखना चाहिए। आइए जानें अस्थमा रोग में किस तरह के पदार्थ खाने चाहिए और किनसे बनाना चाहिए दूरी।

आज आपको बताएंगे कि जिन लोगो को अस्थमा की समस्या है उन लोगो को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए। आइए जानते है अस्थमा के रोगियों के लिए हेल्दी डायट...


ये चीजें खाएं


बीटा कैरोटीन

अस्थमा के रोगियों के लिए खाने का ध्यान देना बहुत जरूरी होता है। बीटा कैरोटीन अस्थमा के रोगी के लिए बहुत फायदेमंद है। गाजर में यह तत्व भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा खुबानी, चेरी, हरी मिर्च, शिमला मिर्च और शकरकंद खाना भी लाभकारी है। इसके सेवन से आपको कोई समस्या नहीं होगी।


शहद और दालचीनी का सेवन

आपको अस्थमा से बचने के लिए शहद और चीनी का भी सेवन करना चाहिए। इसके लिए आ़पको रात को सोने से पहले एक चम्मच शहद में 2-3 चुटकी दालचीनी का पाउडर मिक्स करके खाएं। सुबह उठने के बाद फिर यही प्रक्रिया दोहराएं। इसको आप रोजाना खाएंगे तो आपको अस्थमा में आराम मिलेगा।


विटामिन सी

विटामिन से भरपूर चीजें अस्थमा में आपको बहुत फायदा करती है। इसके लिए आपको इनका सेवन करना चाहिए। संतरा, नींबू, अंगूर, कीवी, आंवला, ब्रोकोली, टमाटर,शिमला मिर्च और बूशेल्स स्प्राउट में यह भरपूर मात्रा में होता है। इन चीजों को खाने से आपको आराम मिलेगा।


कॉफी पिएं

आपको कई बार इसको पीने के लिए मना किया जाता है। कुछ रोगों में कैफिन से बने पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक होते हैं लेकिन अस्थमा में कॉफी पीना फायदेमंद माना जाता है लेकिन दिन में 2 बार से ज्यादा कॉफी का सेवन न करें। ऐसा करने से आपको नुकसान हो सकता है।


तुलसी

आपको बता कि तुलसी का इस्तेमाल आपके लिए काफी फायदेमंद होता है। इससे आपको अस्थमा में आराम मिलता है। तुलसी की चाय या फिर 1 कप गर्म पानी में 2-3 पत्ते तुलसी के डालकर पीने से बहुत फायदा मिलता है। इसका सेवन आपको नियमित करना चाहिए।


ये चीजें ना खाएं


तली हुई चीजे ना खाएं

अस्थमा के मरीजों को एक बात का ध्यान रखना है कि उनको तली हुई और ज्यादा तेल वाली चीजें स नहीं खानी है। ऐसा करना उनके लिए खतरनाक हो सकता है। क्योंकि तली हुई चीजें अस्थमा को बढावा देती है।


मूंगफली ना खाएं

आपको बता दे कि आपको मूंगफली का सेवन अस्थमा के दौरान नहीं करना है। इससे आपको खांसी और सांस फूलने की समस्या ज्यादा हो सकती है। इसलिए जितना हो सके इससे बचकर रहे। ये आपके लिए नुकसानदेह है।


ज्यादा नमक ना खाएं

अस्थमा से जूझ रहे मरीजों खाने में ज्यादा नमक नहीं खाना चाहिए। इस समय आपको हल्का नमक खाना है। इससे आपको आराम रहेगा। अगर आपने अधिक नमक का सेवन किया तो ये नुकसानदेह साबित हो सकता है।


इन चीजों से भी करें परहेज

आपको डिब्बाबंद खाना और जंक फूड्स से भी परहेज करना है। ये आपको काफी नुकसान पहुंचा सकते है। अस्थमा के रोगियों के लिए ये किसी जहर से कम नहीं होते है। आपको इनके सेवन से बचना है।

अस्थमा में जरूर कराएं ये जांच


अस्थमा पर विभिन्न जाचों द्वारा नियंत्रण पाया जा सकता है।अस्थमा में चेस्ट का एक्सरे भी जरूर कराना चाहिए।ब्लड टेस्ट द्वारा अस्थमा का पता नहीं लगाया जा सकता है।इसमें श्वांस नलिकाओं की भीतरी दीवार पर सूजन आ जाती है।

शहरों में पोल्यूशन बढ़ने की वजह से अस्थमा रोगियों की संख्या हर रोज बढ़ रही है। अस्थमा या दमा एक गंभीर बीमारी है जो श्वांस नलिकाओं को प्रभावित करती है। अस्थमा होने पर श्वांस नलिकाओं की भीतरी दीवार पर सूजन आ जाती है। इस स्थिति में सांस लेने में दिक्कत होती है और फेफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है। इससे खांसी आती है, नाक बजती है, छाती कड़ी हो सकती है, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। दमा का दौरा पड़ने पर श्वांस नलिकाएं पूरी तरह बंद हो जाती हैं जिससे शरीर के महत्व पूर्ण अंगों में आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती है। अस्थमा एक गंभीर बीमारी है और इसका दौरा पड़ने पर व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।

अस्थमा के लिए जांच

अस्थमा को ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन विभिन्न जाचों द्वारा इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है ताकि दमा पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन जी सके।

स्पिरोमेटी

यह एक सामान्य प्रकार का टेस्ट  होता है जो किसी भी मेडिकल क्लिनिक में हो सकता सकता है। इस जांच से सांस लेने की दिक्कत या हृदय रोग को पहचाना जा सकता है। इस जांच से आदमी के सांस लेने की गति का पता चलता है।

पीक फ्लो

इस जांच द्वारा पता लगया जा सकता है कि आदमी अपने फेफड़े से कितनी तेजी से और आसानी से सांसों को बाहर कर रहा हे। अस्थमा को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी सांसों को तेजी से बाहर निकालें। इस मशीन में एक मार्कर होता है जो सांस बाहर निकालते समय स्लाइड को बाहर की ओर ढ़केलता है।

चेस्ट एक्सरे

अस्थमा में चेस्ट का एक्सरे कराना चाहिए। चेस्ट एक्सरे द्वारा अस्थमा को फेफडे की अन्य बीमारियों से अलग किया जा सकता है। एक्सरे द्वारा अस्थमा को देखा नहीं जा सकता लेकिन इससे संबंधित स्थितियां जानी जा सकती हैं।


एलर्जी टेस्ट

कई बार डॉक्टर एलर्जी टेस्ट के बारे में सलाह देते हैं, इस टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि आदमी कि ट्रिगर्स की सही स्थिति क्‍या है और कौन सी परिस्थितियां आपको प्रभावित कर सकती हैं।


स्किन प्रिक टेस्ट

स्किन प्रिक टेस्ट बहुत साधारण तरीके से होता है और एलर्जिक टिगर्स जानने का बहुत ही प्रभावी तरीका होता है। यह बहुत ही सस्ता, तुरंत रिजल्ट देने वाला और बहुत ही सुरक्षित टेस्ट होता है।

ब्लड टेस्ट

ब्लड टेस्ट द्वारा अस्थमा का पता नहीं लगाया जा सकता है लेकिन शरीर के त्वचा की एलर्जी के लिए यह टेस्ट बहुत ही कारगर होता है।

शारीरिक परीक्षण

अस्थमा की जांच के लिए डॉक्टर आपका शारीरिक परीक्षण  भी कर सकते हैं जैसे, चेस्ट  के घरघराहट की आवाज सुनना। चेस्ट के घरघराहट की आवाज से अस्थतमा की गंभीरता को पहचाना जा सकता है।

अस्थमा कई कारणों से होता है, अनेक लोगों में यह एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थों, परफ्यूम जैसी खुश्बू आदि से हो सकता है। अस्थंमा धूल, सिगरेट का धुआं, पेंट या रसोईं की गंध, जानवरों की त्वचा, पेड और घास के परागकणों से हो सकता है। अगर माता-पिता को दमा है तो बच्चे में अस्थमा या दमा के  होने की संभावना होती है।


दमा के रोगी हैं तो जरुर करें ये योगा

दमा एक ऐसी बीमारी है जिससे ग्रसित व्यक्ति अक्सर परेशान रहता है, यह बहुत ज्यादा घातक बीमारी है बहुत कम लोग जानते हैं की आज भी पूरे संसार में 30 करोड़ से ज्यादा लोग दमा के शिकार हैं। आज भी ऐसे परिवारों की संख्या बहुत ज्यादा है जिनके घर में कम से कम एक सदस्य इस बीमारी से ग्रस्त है। दमा को अस्थमा भी कहा जाता है और इस बीमारी को आज के समय में पूरी तरह से ख़त्म करना शायद मुश्किल है पर इसको कंट्रोल जरूर किया जा सकता है वो भी योग के द्वारा। योग में कुछ खास यौगिक क्रियाएं ऐसी भी हैं जो की इस रोग को काफी हद तक कंट्रोल कर सकती हैं, योग पर की गई रिसर्च से यह पता चलता है की यदि आप नियमित रूप से सिर्फ 15 से 20 मिनट तक योग करते हैं तो अस्थमा का असर धीरे धीरे कम हो सकता और यह ख़त्म होने के कगार पर भी पहुंच सकता है। योग में सांस लेने वाली यौगिक क्रियाएं ऐसी हैं जिनका सहारा ले कर आप लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार से ये यौगिक क्रियाएं आपके फेफड़ों की कार्यशैली में बहुत अच्छा फर्क लाती हैं और आपको दवाई की जरुरत नहीं पड़ती है। तो आइये जानते हैं इन खास यौगिक क्रियायों के बारे में।

1- शवासन –
शवासन बहुत ही सरल योगासन है इसको हर आयु वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं। इसको करने से व्यक्ति का चित्त और शरीर बेहद तनाव मुक्त हो जाता हैं आर अगर आप तनावमुक्त रहेंगे तो आपका शरीर पहले से ज्यादा अच्छे से काम करेगा और चुस्त रहेगा।

2- प्राणायाम –
प्राणायाम, अस्थमा के लिए एक अचूक यौगिक क्रिया हैं, यह अस्थमा में सबसे ज्यादा लाभ पहुंचता है। इसकी सहायता से आपके फेफड़े जल्द ही सही होने लगते हैं । इस योग को यदि आप करते हैं तो आपका ब्लड प्रेशर कम होता है साथ ही आपकी हार्ट रेट भी कम होती है, आपका मन शांत होता है।

3- बध्धाकोनासन –
इसके करने से आपका मन शांत होता है साथ ही इसमें स्वास-प्रस्वास की क्रिया भी होती है जो की आपके फेफड़ों को लाभ पहुंचाती है। इसको करने से आपके हाथों और पैरों की मांसपेशियों की भी अच्छी तरह से एक्सरसाइज़ हो जाती है तथा आपका हार्ट रेट भी घटता है।

4- मत्स्यासन –
इसमें आपको एक मछली की तरह से ही अपने शरीर की आकृति बनानी होती है, यह काफी आसान है और अस्थमा में बहुत ज्यादा लाभदायक भी। इस आसन का सबसे बड़ा लाभ यह है की इसको करने पर रोगी के गले पर खिंचाव बनता है जिसके कारण रोगी की थायराइड ग्रंथि और सांस की नली रोग मुक्त होती हैं और सांस लेने में परेशानियों का सामना नहीं करना होता है।

5- भुजंग आसन –
भुजंग आसन बहुत आसान है, इसको करने से रोगी का सीना फैलता है जिसके कारण फेफड़ों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और रोगी का रक्त परिसंचरण भी सही हो जाता है जिसके कारण रोगी जल्द ही रोग मुक्त होता चला जाता हैं।

6- ब्रिज पोज़ –
यह योगासन यदि रोगी करता हैं तो इससे रोगी के फेफड़ों और सीने पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता हैं, इससे रोगी के फेफड़े खुलते है और सीना चौड़ा होता हैं, जिसके कारण रोगी को अस्थमा में बहुत लाभ मिलता हैं।

7-अर्धमत्स्येन्द्रासन –
इसको नियमित रूप से करने पर पीठ, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इससे फेफड़ों में खुल कर ऑक्‍सीजन जाती है इसलिये यह दमा के रोगियों को जरुर करना चाहिये।

8, श्वासन
श्वासन में कुछ मिनट लेटकर अपना योग अभ्यास समाप्त करें ।यह मुद्रा शरीर को ध्यान अवस्था में लाती है, आप को पुनर्जीवित करती है और चिंता और मानसिक दबाव को कम करने में भी मदद करती है।एक शांत और तनावमुक्त शरीर और मानसिकता अस्थमा से निपटने का सही तरीका है|

9, नाड़ी शोधन प्राणायाम
अपने मन और शरीर को तनावमुक्त करने के लिए इस प्राणायाम से शुरुआत करें| इस सांस लेने की तकनीक के द्वारा कई श्वसन और परिसंचरण संबंधी समस्याओं का समाधान मिल जाता है|

10, कपाल भाती प्राणायाम
यह साँस लेने की तकनीक मन को शांत करती है और तंत्रिका तंत्र को सक्रिय करती है। यह सभी नाड़ियों (ऊर्जा चैनल) को भी साफ करता है और रक्त परिसंचरण में सुधार करता है।



तो दोस्तो आज जाना कि कैसे हम ( Apni Asthma की problem से छुटकारा पा सकते हौ ) ओर अपनी लाइफ को खुश रख सकते है दोस्तो आप इन सब advices को आपनी लाइफ मैं जरूर Try करे और ऐसे ही ओर अछे articles के लिए जुड़े रहे ( https://normaladvices.blogspot.com ) से।

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